पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक डॉ. सिग्मंड फ्रायड स्वयं कई शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रस्त था। 'कोकीन' नाम की नशीली दवा का वो व्यसनी भी था। इस व्यसन के प्रभाव में आकर उसने जो कुछ लिख दिया उसे पाश्चात्य जगत ने स्वीकार कर लिया और इसके फलस्वरूप आज तक वे शारीरिक और मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं। अब पश्चिम के मनोवैज्ञानिकों ने फ्रायड की गलती को स्वीकार किया है और एडलर एवं कार्ल गुस्ताव जुंग जैसे प्रखर मनोवैज्ञानिक ने फ्रायड की कड़ी आलोचना की है। फिर भी इस देश के मनोचिकित्सक और सेक्सोलोजिस्ट कई बार हमारे युवावर्ग को फ्रायड के सिद्धान्तों पर आधारित उपदेश देकर गुमराह कर रहे हैं। कुछ लोग समझते हैं किः'ब्रह्मचर्य को वैज्ञानिक समर्थन प्राप्त नहीं है.... यह केवल हमारे शास्त्रों के द्वारा ही प्रमाणित है....' पर ऐसी बात नहीं है। वास्तव में या तो लोगों को गुमराह करने वाले लोग फ्रायड के अंधे अनुयायी हैं, या तो वे इस देश में भी पाश्चात्य देशों की नाईं पागलों की और यौन रोगियों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं जिससे उनको पर्याप्त मरीज मिलते रहें और उनका धंधा चलता रहे।
आज के बड़े-बड़े डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक भारत के ऋषि-मुनियों के ब्रह्मचर्य विषयक विचारधारा का, उनकी खोज का समर्थन करते हैं। डॉ. ई. पैरियर का कहना हैः "यह एक अत्यन्त झूठा विचार है कि पूर्ण ब्रह्मचर्य से हानि होती है। नवयुवकों के शरीर, चरित्र और बुद्धि का रक्षक रखना सबसे अच्छी बात ही है।"
ब्रिटिश सम्राट के चिकित्सक सर जेम्स पेजन लिखते हैं- "ब्रह्मचर्य से शरीर और आत्मा को कोई हानि नहीं पहुँचती। अपने को नियंत्रण में रखना सबसे अच्छी बात है।"
आज कल के मनोचिकित्सक और यौन विज्ञान के ज्ञाता जो समाज को अनैतिकता, मुक्त साहचर्य (Free Sex) और अनियंत्रित विकारी सुख भोगने का उपदेश देते हैं उनको डॉ. निकोलस की बात अवश्य समझनी चाहिए। डॉ. निकोलस कहते हैं- "वीर्य को पानी की भाँति बहाने वाले आज कल के अविवेकी युवकों के शरीर को भयंकर रोग इस प्रकार घेर लेते हैं कि डॉक्टर की शरण में जाने पर भी उनका उद्धार नहीं होता और अंत में बड़ी कठिन रोमांचकारी विपत्तियों का सामना करने के बाद असमय ही उन अभागों का महाविनाश हो जाता है।"
वीर्यरक्षा से कितने लाभ होते हैं यह बताते हुए डॉ. मोलविल कीथ (एम.डी.) कहते हैं- "वीर्य तुम्हारी हड्डियों का सार, मस्तिष्क का भोजन, जोड़ों का तेल और श्वास का माधुर्य है। यदि तुम मनुष्य हो तो उसका एक बिन्दु भी नष्ट मत करो जब तक कि तुम पूरे 30 वर्ष के न हो जाओ और तभी भी केवल संतान उत्पन्न करने के लिए। उस समय स्वर्ग के प्राणधारियों में से कोई दिव्यात्मा तुम्हारे घर में आकर जन्म लेगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।"
हमारे ऋषि-मुनियें ने तो हजारों वर्ष पहले वीर्यरक्षा और संयम से दिव्य आत्मा को अवतरित करने की बात बताई है लेकिन पाश्चात्य बुद्धिजीवियों से प्रभावित हमारे देश के शिक्षित लोग उन महापुरुषों के वचनों को मानते नहीं थे। अब पाश्चात्य चिकित्सकों की बात मानकर भी यदि वे संयम के रास्ते चल पड़ेंगे तो हमें प्रसन्नता होगी। हिन्दू धर्मशास्त्रों के उपदेशों को विधर्मी एवं नास्तिक लोग स्वीकार न करें यह संभव है पर अब जबकि उन्ही बातों को विज्ञानी मान रहे हैं और अपनी भाषा से ब्रह्मचर्य की आवश्यकता बता रहे हैं, वैज्ञानिक स्वीकृति मिल रही है तब उसका स्वीकार सबको करना ही पड़ेगा और सीधे नहीं तो अनसीधे ढंग से भी उनक भारतीय संस्कृति की शरण में आना ही पड़ेगा। इसी मे उनका कल्याण निहित है।
ब्रह्मचर्य से कितने लाभ होते हैं यह बताते हुए डॉ. मोन्टेगाजा कहते हैं- "सभी मनुष्य, विशेषकर नवयुवक, ब्रह्मचर्य के लाभें का तत्काल अनुभव कर सकते है। स्मृति की स्थिरता और धारण एवं ग्रहण शक्ति बढ़ जाती है। बुद्धिशक्ति तीव्र हो जाती है, इच्छाशक्ति बलवती हो जाती है। सच्चारित्र्य से सभी अंगों में एक ऐसी शक्ति आ जाती है कि विलासी लोग जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। ब्रह्मचर्य से हमें परिस्थितियाँ एक विशेष आनंददायक रंग में रँगी हुई प्रतीत होती हैं।
ब्रह्मचर्य अपने तेज-ओज से संसार के प्रत्येक पदार्थ को आलोकित कर देता है और हमें कभी न समाप्त होने वाले विशुद्ध एवं निर्मल आनन्द की अवस्था में ले जाता है, ऐसा आनंद जो कभी नहीं घटता।"
तथाकथित मनोचिकित्सक जो विक्षिप्त फ्रायड के अंधे अनुयायी हैं वे अल्पबुद्धि प्रायः वर्तमानपत्रों और सामयिकों में स्वास्थ्य प्रश्नोत्तरी में हस्तमैथुन व स्वप्नदोष को प्राकृतिक, स्वाभाविक बताते हैं और हमारे युवावर्ग को चरित्रभ्रष्ट करने का बड़ा अपराध करते है, महापाप करते हैं।
डॉ. केलाग महोदय लिखते हैं- "मेरी सम्मति में मानव-समाज को प्लेग, चेचक तथा इस प्रकार की अन्य व्याधियों एवं युद्ध से इतनी हानि नहीं पहुँचती जितनी हस्तमैथुन तथा इस प्रकार के अन्य घृणित महापातकों से पहुँचती है। सभ्य समाज को नष्ट करने वाला यह एक घुन है, जो अपना घातक कार्य लगातार करता रहता है और धीरे-धीरे स्वास्थ्य, सदगुण और साहस को समूल नष्ट कर देता है।"
डॉ. क्राफट एर्विंग ने लिखा हैः "यह कली की सुंदरता एवं महक को नष्ट कर देता है जिसे पूर्ण फूल एवं पवित्र होने पर ही खिलना चाहिए परंतु ये कुण्ठित बुद्धिवाले इन्द्रिय-तृप्ति के लिए महान भूल करते हैं... इससे नैतिकता, स्वास्थ्य, चिन्तनशक्ति, चारित्र्य एवं कल्पनाशक्ति तथा जीवन की अनुभूति नष्ट हो जाती है।"
डॉ. हिल का कथन हैः "हस्तमैथुन वह तेज कुल्हाड़ी है, जिसे अज्ञानी युवक अपने ही हाथों से अपने पैर पर मारता है। उस अज्ञानी को तब चेत होता है, जब हृदय, मस्तिष्क और मूत्राशय आदि निर्बल हो जाते हैं तथा स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, प्रमेह आदि दुष्ट रोग आ घेरते हैं।"
अतः जहाँ भी, किसी भी अखबार या पत्रिका में कोई मनोचिकित्सक या सेक्सोलोजिस्ट समाज को गुमराह करने के लिए ब्रह्मचर्य और नैतिकता के विरूद्ध लेख लिखते हों, जो समाज की आधारशिलास्वरूप चरित्र, संयम और नैतिकता को नष्ट करने का जघन्य अपराध कर रहे हों ऐसे लोगों का अथवा वर्तमानपत्र या पत्रिकाओं का व्यापक तौर पर विरोध करना चाहिए।
बड़े-बड़े महानगरों के रेलवे स्टेशनों पर जब गाड़ी पहुँचती है तब दीवारों पर विज्ञापन लिखे हुए दिखते है। 'खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त करें... संतान-प्राप्ति के इच्छुक संपर्क करें... शीघ्रपतन और नपुंसकता से ग्रस्त लोग संपर्क करें।'आज से पचीस साल पहले इतने यौन रोगी भारत में नहीं थे जितने आज हैं। संयम और नैतिकता का ह्रास होने के कारण कई लोग कई प्रकार के रोगी बन गये। रोगों का उपचार करने की अपेक्षा रोगों को होने न देना उत्तम है।Prevention is better than cure.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) और कई राष्ट्रीय संस्थाएँ चेचक, पोलियो, टी.बी., मलेरिया, प्लेग आदि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए करोड़ों डॉलर खर्च करती है, अपने लक्ष्य में कुछ हद तक वे सफल भी होती हैं परन्तु इन सबसे ज्यादा हानिकर रोग है वीर्यह्रास। इसके द्वारा कई प्रकार के शारीरिक, मानसिक और जातीय रोगों का उदभव होता है, सामाजिक अपराध बढ़ते हैं, अनैतिकता और चरित्रहीनता नग्न नृत्य होने लगता है जो आगे चलकर संपूर्ण जाति के स्वास्थ्य को नष्ट कर डालता है। वीर्यह्रासरूपी रोग का नियंत्रण करने से व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली भारी हानि से विश्वसमुदाय बच सकता है और उपरोक्त सभी स्तरों पर ब्रह्मचर्य के अप्रतिम लाभ से सर्वांगीण उन्नति प्राप्त कर सकता है। अतः इस महारोग के नियंत्रण का सर्वप्रथम प्रयास विश्व में कहाँ हुआ हो तो यह केवल संत श्री आसारामजी आश्रम द्वारा चलाये जा रहे युवाधन सुरक्षा अभियान के द्वारा हुआ है। संपूर्ण विश्व के लिये कल्याणकारी इस अभियान में स्वयं जुड़ जायें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को इससे जोड़कर पुण्य के भागी बनें। मानवता की रक्षा के पुण्यमय कार्य में भागीदार बनें।
No comments:
Post a Comment