NARAYAN NARAYAN
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बापूजी के सत्संग से :-
पूज्य बापूजी -- संकल्प-त्याग करने
का अभ्यास करने से निश्चय ही
भगवान मिल जाते हैं – इसका मैं ठेका
लेता हूँ।
दो स्वासो के बीच की अवस्था
निसक्ल्प अवस्था होती है
पहली जब अन्दर गया स्वास बाहर आने से पूर्व
ठहरा तब दूसरी जब स्वास बाहर आकर खाली हो गया दूसरा स्वांस आने के पूर्व
का समय तब
साधना चालू होते ही संकल्प
विकल्प कम होने लगते हैं
पांचो शरीरों के पार की आत्मा की ओर
की यात्रा होने लगती है
जीभ तालू में लगादो ( तालू में सुमृति
नाड़ी होती है ) ज्ञानमुद्रा
( तर्जनी उंगली अंगूठे से मिला दो )
में बैठो द्रष्टि नाक
की नोक (नासाग्रह) पर लगा दो
साँस अन्दर जाय तो ॐ बाहर आये
तो 1 फिर अन्दर जाय तो शांति
बाहर आये
तो 2 फिर अन्दर जाय तो ॐ बाहर
आये तो 3
फिर अपने आप को खोजो मैं कोन हूँ
या अपने अहं को खोजो की कहाँ
रहता है ।
जो खोज रहा है उसी को खोज लें ।
बापूजी बोलते हैं ये सबसे मधुर संगीत है
।
सत्संग में सुना है की बापूजी का ये
जप
तो हर समय चलता ही रहता है केवल
जब वो बोलते हैं बस तभी ही जप
रुकता है ।
एक बार स्वामी लीलाशाजी जी
भगवान ने बापू जी की पत्तनी
(माता लक्ष्मी देवी )
के सर पर हाथ रख दिया था और
उनकी भी ये ही साधना अपने आप
चालू हो गयी ।
दीक्षा के समय भी ये साधना
बापूजी रोज करने को बोलते हैं इसमें
कोई भी नियम नहीं है ।
आप बस में ट्रेन में यात्रा कर रहे
हो या किसी ऑफिस में घर में
दुकान
में हो या कही और हो ये करे जरुर ।
ये योगियो की गुप्त शाम्भवी
मुद्रा है
इससे संत कबीर गुरुनानक जी महावीर
गौतम बुद्ध और भी कई महापुरषो ने
संत्तव को निखारा है
बिल्क के सम्राट इब्राहीम का
सत्संग
भी सुना है बापू की सत्संग की cd
( अहम् को खोजा तो ईश्वर मिला )
में।
उसमे इब्राहीम ये साधना से सुबह
4 :00 बजे से चालू की और सुर्योदय
तक ईश्वर प्राप्ति कर ली ।
जो खोज रहा है उसी को खोज लें ।
रात्रि को सोते समय अगर ये जप करते
करते सो जाये तो योग निद्रा में
प्रवेश हो जाता है
इस साधना के विषय में dvd गुरुप्रसाद
में भी विस्तृत सत्संग है
बापूजी इसे राज मार्ग कहते हैं ।
इस साधना से कई गंभीर रोगों से
भी बचाव होता है
यदि जीभ को दातों के मूल में ( जड़
में ) लगाकर जप किया जाय
तो स्वास्थ्य लाभ होता है
माला स्वासो स्वास की भगत जगत
के बीच जो फेरे सो गुरुमुखी ना फेरे
सो नीच
जिनके निचले कर्म हैं वो ये
साधना नहीं कर सकते
और जो ये साधना करेंगे
वो जल्दी ही गन्दी आदतों से बाहर
आ जायेंगे ।
नानक जी इस साधना के विषय में
कहा
निर्भव जपे सकल भव मिटे संत कृपा ते
प्राणी छूटे ।
जिन खोजा तिन पाइया
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ये आगे का बापूजी का सत्संग है की
नहीं ये मुझे नहीं पता
काकभूषण जी और वशिष्ठ जी का
संवाद :-
सोहम या स्वसोस्वास की साधना
अर्थात स्वासों को गिनना प्राण
कला की साधना है
इसमें प्राणों का अनुसन्धान करके
प्राणों के आने जाने के संधि स्थान में
आया जाता है
अर्थात प्राणों के आने जाने के बीच
में केवली कुम्भक को बढ़ाया जाता
है
प्राणों के आने जाने के बीच की
स्थिति जो है वो आत्मतत्व है
जब अभ्यास करते हैं तो प्राण
शिथिल होते जाते हैं।
इसके प्रभाव से
मन भी शिथिल होता जाता है
क्यूंकि मन ओर पराण एक दुसरे के पूरक हैं
जहा प्राण है वहा मन है
जहा मन है वहा प्राण है
कुछ ही दिनों के अभ्यास से प्राण
धीरे चलने लगेगा और एक समय बाद
कमहोते होते प्राण हृदय में लीन हो
जायेंगे
जब प्राण हृदय में नष्ट हो जायेंगे
अर्थात विलीन हो जायेंगे तो मन
भी जो प्राणों के सहारे चलता है
विलीन हो जायेगा
और हृदय में जो चैतन्य है उसका
साक्षात्कार हो जायेगा।
स्वास लेते समय सो की भावना और
छोडते समय हम की भावना करे
या swasoswas गिने और गुरुभगवान
का सत्संग सुने उनके बताये अनुसार
साधना करे तो साक्षात्कार हो
जाता है
ॐ
NARAYAN NARAYAN —
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