डॉ प्रेम जी :-
एक बार भगवान् सूर्य नारायण की कीर्ति और यशोगान सुनकर कुछ उल्लू इर्ष्या द्वेष से जलने लगे । अखिल भारतीय ही नहीं अखिल विश्व उल्लू परिषद् ने फैसला बहाल कर दिया कि सूर्य को हम तेजस्वी नहीं मानते । उसमें प्रकाश नहीं है । क्योंकि हमको उनका प्रकाश दिखता नहीं है । ये फैसला सुनकर उनके मंडल के समर्थक एक पत्रकार ने सूर्य भगवान् से पूछा कि आप किस श्रेणी के हो? अखिल विश्व उल्लू परिषद् आपको तेजस्वी नहीं मानती । सूर्य भगवान् समझ गए कि पूछनेवाला किस श्रेणी का है। जब वह उल्लू की श्रेणी का है तो उसको सत्य से तो कुछ लेनादेना नहीं है । इसलिए सूर्य भगवान् ने उत्तर दिया “अन्धकार की श्रेणी का” ये उत्तर सुनकर वह पत्रकार खुश हो गया और उसे एक अंतर्राष्ट्रीय समाचार के रूप में मीडिया के द्वारा दूसरे उल्लूओं की सहायता से प्रचार करने में लग गया। जितने भी लोग उसी उल्लू श्रेणी के थे वे सब सूर्य भगवान् की बात को सच्ची मानकर उनकी आलोचना करने लगे और अपने अपने comments देने लगे । पर बेचारे ये नहीं समझ पाए कि वे इन कमेंट्स के द्वारा अपने उल्लू होने का परिचय दे रहे है ।
अगर मान ले कि कोई संत गधे की श्रेणी के है तो ये भी मानना पड़ेगा कि ऐसे संत से आशीर्वाद और प्रेरणा पाने के लिए उनके दर्शन और सत्संग सुनने के लिए जानेवाले भारत के 6 प्रधान मंत्री (गुलझारी लाल नंदा, चंद्रशेखर, पी. व्ही. नरसिन्हाराव्, एच.डी. देवेगोवड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी, और नरेंद्र मोदी), विभिन्न राज्यों के बीसों मुख्य मंत्री, विभिन्न पक्षों के सैकड़ो MLA और सैकड़ो MP ये सब गधे से निम्न श्रेणी के सिद्ध हो जायेंगे क्योंकि बुद्धिमान मनुष्य अपने से श्रेष्ठ महानुभाव के पास ही आशीर्वाद और प्रेरणा लेने जाते है । कोई भी गधे की श्रेणी का व्यक्ति किसी राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए इतने लोगों को आशीर्वाद और प्रेरणा नहीं दे सकता । जब ये राष्ट्र के वरिष्ठ नेता अगर गधे से निम्न श्रेणी के सिद्ध हुए तो उनको चुनाव के द्वारा उन पदों पर बिठानेवाले और उनके द्वारा शासित होनेवाले राष्ट्र के सभी लोग गधे से निम्न श्रेणी के लोगों से भी निम्न श्रेणी के सिद्ध होगे।
पर इतना विचार करने की क्षमता उन उल्लूओं के पास नहीं है ।अगर वे उल्लू अपने आपको बुद्धिमान सिद्ध करना चाहे तो उनको शासित करनेवालों को महाबुद्धिमान मानना पड़ेगा और उन महाबुद्धिमानों को प्रेरणा और आशीर्वाद देनेवाले संत को संत शिरोमणि मानना ही पड़ेगा ।
जो मनुष्य की श्रेणी के है वे तो अपने अनुभव से जानते है कि सूर्य भगवान् की कृपा से ही पृथिवी के सब जीव, वनस्पति, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि पोषण प्राप्त करते है पर उल्लूओं के पास तो वह दृष्टि ही नहीं है कि वे सूर्य भगवान् को पहचान सके । उल्लू के पास तो दृष्टि नहीं है इसलिए वे सूर्य भगवान् को नहीं पहचानते पर इन उल्लू पत्रकारों के पास तो दृष्टि है पर चांदी के चंद टुकड़ों के लिए अपने धर्मसे, अपनी संस्कृति से और अपने राष्ट्र से गद्दारी करनेवाले उल्लू सूर्य भगवान् के सामर्थ्य और प्रभाव को देखने का बाद भी विधर्मी राष्ट्रविरोधी ताकतों के इशारों पर सूर्य भगवान् को पूछते हैं कि वे किस श्रेणी के है । उनको सूर्य भगवान् और क्या उत्तर से सकते है और उस उत्तर से वे खुश हो गए ये भी उनके उल्लूपने का प्रमाण है ।
ऐसे ही जो मनुष्य है वे जानते है कि पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया और विधर्मी ताकतों से सनातन संस्कृत की रक्षा की है ।वे केवल संत नहीं है, वे धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेनेवाले भगवान् के नित्य अवतार है ।उनको किसी श्रेणी में कैसे बाँध सकोगे?
आज तक जितने भी अवतार और धर्म की रक्षा करनेवाले सच्चे संत हुए है उनको तत्कालीन धर्म के ठेकेदारों ने महापुरुष या संत माना नहीं था और उनको सताने में कोई कमी नहीं रखी थी फिर भी वे महापुरुष उनको क्षमा करके अपना दैवी कार्य करते रहे ।
भगवान् श्री कृष्ण को यज्ञ करनेवाले धर्म के ठेकेदारों ने भोजन नहीं दिया (श्री मद भागवत दशम स्कंध अध्याय २३), इस से समझ लेना कि कृष्ण भगवान को धर्म के ठेकेदारों ने किस श्रेणी में गिना होगा । महाभारत के युद्ध के बाद उत्तंक तपस्वी तो भगवान् कृष्ण को शाप देने को तैयार हो गए थे, तो उन्होंने भगवान् को किस श्रेणी में गिना होगा इसका अनुमान कर लेना । संत ज्ञानेश्वर और उनको भाइयों को तथा बहन को धर्म के ठेकेदारों ने ब्राह्मण जाती से बाहर कर दिया था और अनेक प्रकार से कष्ट दिए थे ।संत कबीर, संत दादू दीन दयाल, संत रहिदास आदि अनेक सच्चे संतो को धर्म के ठेकेदारों ने महापुरुष मानने से इनकार कर दिया था और उनको सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी । आदि जगतगुरु शंकराचार्य की माताजी की अंत्येष्टि में तत्कालीन धर्म के ठेकेदारों ने सहयोग नहीं दिया और उनको माता के शरीर के टुकड़े कर के अग्नि संस्कार करना पडा था । स्वामी विवेकानंद ने कितने कष्ट सहकर अमेरिका में सन 1893 में Parliament of World religions में हिन्दू धर्म का नाम रोशन किया फिर भी तत्कालीन धर्म के ठेकेदारों ने विधर्मी हिन्दू विरोधी ताकतों से मिलकर अमेरिका में स्वामी विवेकानंद भारत के संत नहीं है, चरित्रहीन सन्यासी है ऐसा कुप्रचार किया था. तो सन 1993 में Parliament of World religions में हिन्दूधर्म का नाम रोशन करनेवाले संत श्री आशारामजी बापू हिन्दू धर्म के संत नहीं है ऐसा कुप्रचार वर्त्तमानकालीन धर्म के ठेकेदारों ने विधर्मी हिन्दू विरोधी ताकतों से मिलकर भारत में और मीडिया के द्वारा विश्व में किया हो तो इसमें आश्चर्य क्या है?
उनके भ्रष्ट और कृतघ्न होने का प्रमाण ये है कि हिन्दू धर्म के सभी 13 अखाड़ा के द्वारा सर्वानुमत से संत श्री आशारामजी बापू को धर्म रक्षा मंच के प्रमुख के रूप में मुंबई में आयोजित एक विशाल कार्यक्रम में नियुक्त किया गया था । जब धर्म रक्षा के कार्य को करने के कारण उनको षड्यंत्र में फंसाकर बिना किसी अपराध के जेल में बंद कर दिया गया तब वही अखाड़ा परिषद् कहती है कि वे उनको संत नहीं मानते । ऐसे जयचंदो और अमीचंदो के कारण ही भारत पर विदेशी आक्रान्ता शासन कर सके थे और आज भी विधर्मी ताकतें हिन्दू संतों को सताने में और हिन्दू धर्म को बदनाम करने में सफल हो रही है । हिन्दू विरोधी ताकतों से हाथ मिलानेवाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों से समाज को सावधान रहना पड़ेगा अन्यथा भारत फिर से गुलाम बन सकता है ।
सच्चे संतों का धर्म के ठेकेदार विरोध करते हैं इसका कारण यही है कि धर्म के ठेकेदारों की दुकानदारी समाज को सुलाने से चलती है और जगे हुए महापुरुष समाज को जगाते है ।तब वे अज्ञान की नींद में सो रहे, खर्राटे लेते हुए धर्म के ठेकेदार कौन जगा हुआ है इस बात का फैसला देने लगते है ।
क्या सोया हुआ मनुष्य ये निर्णय दे सकता है कि कौन जगा हुआ है? फिर भी उनके विरोधों को सहते हुए महापुरुष समाज को जगाने का दैवी कार्य करते ही रहते है ।जब अनादी काल से धर्म के ठेकेदार सच्चे संत महापुरुषों की निंदा करके और उनको सताकर अपने उल्लूपने का परिचय देते आये है तो इस समय किसी सच्चे संत को अखिल विश्व उल्लू परिषद् ने फर्जी बाबा घोषित कर दिया तो उसमें क्या आश्चर्य है । उन्होंने अपने उल्लूपन का ही परिचय दिया है ।जो उनकी जमात के होगे वे उनका समर्थन करेंगे और जो मनुष्य की दृष्टि वाले होगे वे तो सूर्य नारायण की महिमा का स्वयं अनुभव करेंगे, या उनके दैवी कार्यों को देखकर भी समझ जायेंगे कि उल्लू कौन है और सूर्य भगवान् कौन हैं।
ब्रह्मज्ञानी ब्रह्म स्वरूप होते है, उनकी कोई श्रेणी नहीं होती ।जो तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के प्रमाण से संत घोषित होते है वे सच्चे संत नहीं होते
सच्चे संत किसी मत, पंथ, या सम्प्रदाय के गुलाम नहीं होते ।
संत कबीर, गुरु नानक, संत ज्ञानेश्वर, राम कृष्ण परमहंस आदि महापुरुष अपने अनुभव से ब्रह्म स्वरूप थे उनको किसी धर्म के ठेकेदारों के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती । वे एक साथ अपने ब्रह्म स्वरूप में स्वयं को ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में भी अनुभव करते है और मच्छर, कीड़े, गधे आदि रूप भी मेरे ही है ऐसा जानते है ।
उनको आप किस श्रेणी के हो? ये पूछना ही पूछनेवाले की मूर्खता का प्रदर्शन है ।
गुरु नानक ने कहा है
ब्रह्मज्ञानी की गति ब्रह्मज्ञानी जाने ।
आजकल के पत्रकार क्या जाने कि ब्रह्मज्ञानी क्या होते है?
ऐसे मूर्खों को टालने के लिए ब्रह्मज्ञानी ऐसा जवाब दे दे इसमें कोई आश्चर्य नहीं है ।
पूछनेवाला अगर शास्त्रज्ञ होता तो किसी ब्रह्मज्ञानी संत से ऐसा प्रश्न पूछता ही नहीं कि आप किस श्रेणी में आते हो?