गया में पिण्डदान से प्रेतयोनि से मुक्ति
सत्य घटना
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श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार कल्याण में श्राद्ध पर सविशेष लिखते थे और श्राद्ध करने पर बहुत जोर देते थे। एक उच्चशिक्षित बुद्धिवादी सज्जन ने यह पढ़ कर सोचा कि शायद हनुमानप्रसादजी ब्राह्मण हैं,अतः श्राद्ध पर जोर देते हैं। उक्त सज्जन श्राद्ध को अंधविश्वास समझते थे। एक बार वे गोरखपुर आये और भाईजी से मिल कर इस पर चर्चा करने का निश्चय किया। अतः वे गीतावाटिका में भाईजी के निवास स्थान पर पहुंच गये। उन्होंने श्राद्ध पर चर्चा शुरू करते हुए इसको ढकोसला बताया और भाईजी से कहा कि आपको बिना किसी पुष्ट प्रमाण इस प्रकार के अंधविश्वास का प्रचार नहीं करना चाहिये। जो व्यक्ति मर गया है, उसके नाम पर अन्नादि देने से उसको वह कैसे मिल सकता है?
भाईजी उनकी बातों को शांतिपूर्वक सुनते रहे और फिर कहा कि मैं कल्याण में कोई बात तभी लिखता हूं जब मेरे पास उसका प्रमाण हो। श्राद्ध के विषय में मेरे पास एक ऐसा पुष्ट प्रमाण है कि मैं उसके सामने दुनिया के किसी भी व्यक्ति की बात को मानने के लिये तैयार नहीं हूं।
उक्त सज्जन ने कहा---बताइये, वह क्या प्रमाण है। मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप सत्यवादी व्यक्ति हैं । आप झूठ नहीं बोल सकते।
भाईजी ने कहना प्रारम्भ किया---बात उन दिनों की है जब मैं मुम्बई में व्यापार करता था। शाम को भोजन करने के बाद मैं चौपाटी पर चला जाता था और वहां पर रखी बेंच पर बैठ कर भगवन्नाम जप करता था।एक दिन की बात है। रात हो गई थी। मैं बेंच पर नाम जप कर रहा था। मैंने देखा कि मेरे सामने एक सज्जन खड़े हैं। बहुत समय हो गया तब मैंने उनसे कहा-- श्रीमान् जी बैठ जाइये , खड़े क्यों हैं? अब उन सज्जन ने जवाब दिया-- देखिये, घबराइये मत, मैं प्रेत हूं, मेरी मृत्यु हो चुकी है,मनुष्य नहीं हूं। प्रेत का नाम सुनते ही मेरे तो पसीना छूटने लगा। प्रेत ने कहा-- मैं आपका कोई अनिष्ट नहीं करूंगा । आपको एक धार्मिक सज्जन समझ कर आपके पास आया हूं। आप मेरा एक काम कर दीजिये। गयाजी में मेरा श्राद्ध पिण्ड दान करवा दीजिये। इससे मुझे इस कष्टपूर्ण प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जायगी। पूर्वजन्म में मैं पारसी था। प्रेतों की कई श्रेणियां होती है। जब तक कोई मेरे से बात नहीं करता, मैं बोल नहीं सकता। आपने पहले मेरे से बात की तब मैं बोल सका हूं।
मैंने कहा, पारसी तो श्राद्ध एवं गया पिण्डदान में विश्वास नहीं करते, फिर आप मुझे श्राद्ध पिण्ड दान के लिये क्यों कह रहे हैं? प्रेत ने कहा, सत्य अगर सत्य है तो वह सभी पर लागू होता है। किसी एक धर्म विशेष से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।
मैंने मुम्बई में उनके निवास स्थान का पता पूछा, पारसी प्रेत ने अपने निवास का पूरा पता बता दिया। इसके बाद वह प्रेत अन्तर्धान हो गया।
दूसरे दिन मैंने प्रेत के बताये गये पते पर जांच की तो सब बातों को सत्य पाया। कुछ दिन पहले वहां एक पारसी सज्जन की मृत्यु हुई थी। मेरे एक मित्र थे हरिरामजी ब्राह्मण। मैंने उनको पारसी प्रेत का श्राद्ध पिण्डदान करने के लिये गयाजी भेजा। हरिरामजी ने गयाजी जाकर शास्त्रोक्त विधि से पारसी प्रेत का पिण्डदान कर दिया। जिस दिन पिण्डदान किया, उसी दिन रात्रि में वह प्रेत वापस मेरे सामने प्रकट हुआ। प्रेत ने कहा, आपने मेरा काम कर दिया, मैं आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये आया हूं। गयाजी में पिण्डदान से मेरी प्रेतयोनि से मुक्ति हो गई है। अब मैं ऊपर के लोक में जा रहा हूं। मैंने फिर प्रेत से कई बातें पूछीं। मैंने पूछा-- क्या स्वर्ग नरक सत्य है? प्रेत ने कहा, हां सब सत्य है। प्रेत ने और भी कई बातें बताई जो हमारे शास्त्रों में लिखी हुई है। प्रेत ने कहा, शास्त्रों की बातें ऐसी हैं मानो हमारे ऋषियों ने परलोक को अपनी आंखों से देख देख कर लिखा है। प्रेत ने बताया कि किसी के प्रति वैर रख कर मरने वाले की परलोक में बड़ी दुर्गति होती है। व्यभिचारी की भी बहुत दुर्गति होती है। और भी कई बातें बताईं जिनको मैं अभी सबके सामने प्रकठ नहीं कर सकता।
भाईजी की बात सुनकर वे सज्जन गद्गद हो गये और भाईजी को प्रणाम कर लौट गये।
( त्रुटि के लिये क्षमा करें 🙏)
-----------प्रस्तुतिः बीएल परिहार
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गया में पिण्डदान से प्रेतयोनि से मुक्ति ( सत्य घटना)
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