"मुझे सत्संग में आने का मौका पहली बार मिला है, और पूज्य बापूजी से एक अदभुत बात मुझे और आप सबको सुनने को मिली है, वह है प्रेम की बात | इस सृष्टि का जो मूल तत्व है, वह है प्रेम | यह प्रेम नाम का तत्व यदि न हो तो सृष्टि नष्ट हो जायेगी | लेकिन संसार में कोई प्रेम करना नहीं जानता, या तो भगवान प्यार करना जानते हैं या संत प्यार करना जानते हैं | जिसको संसारी लोग अपनी भाषा में प्रेम कहते हैं, उसमें तो कहीं-न-कहीं स्वार्थ जुडा होता है लेकिन भगवान संत और गुरु का प्रेम ऐसा होता है जिसको हम सचमुच प्रेम की परिभाषा में बांध सकते हैं | मैं यह कह सकती हूँ कि साधु-संतों को देश की सीमायें नहीं बांधतीं | जैसे नदियों की धाराएँ देश और जाति और संप्रदाय की सीमाओं में नहीं बंधता | कलियुग में हृदय की निष्कपटता, निःस्वार्थ प्रेम, त्याग और तपस्या का क्षय होने लगा है, फिर भी धरती टिकी है तो बापू ! इसलिए कि आप जैसे संत भारतभूमि पर विचरण करते हैं | बापू की कथा में ही मैंने यह विशेषता देखी है कि गरीब और अमीर, दोनों को अमृत के घूंट एक जैसे पीने को मिलते हैं | यहां कोई भेदभाव नहीं है |"
-सुश्री उमा भारती,
No comments:
Post a Comment