(17th June’ 2015 to 16th July’ 2015 ) तक अधिक मास

�� अधिक मास माहात्म्य ��

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�� अधिक मास में सूर्य की संक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश) न होने के कारन इसे ‘मलमास’ (मलिन मास ) कहा गया है | भगवान कृष्ण ने इसका स्वामित्व स्वीकार केर अपना ‘पुरुषोत्तम ’ नाम इसे प्रदान किया है |

��  व्रत विधि  ��

�� इस मास में आँवले व तिल का उबटन शरीर पर मल कर स्नान करना , आँवले के पेड़ के निचे भोजन करना भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है , साथ ही यह स्वास्थ्यप्रद और प्रसंन्ताप्रद भी है |

�� इस मास में भगवान के मंदिर , जलाशय या नदी में अथवा तुलसी , पीपल आदि पूजनीय वृक्षों के सम्मुख दीप-दान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं , दुःख शोकों का नास होता है , वंशदीप बढ़ता है , ऊँचा सान्निध्य मिलता है तथा आयु बढती है |

�� भगवान श्री कृष्ण इस मास की व्रत विधि एवं महिमा बताते हुए कहते हैं : “इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान दान जप होम स्वध्याय , पित्रितर्पण तथा देवार्चन किया जाता है , वह सब अक्षय हो जाता है | जिन्होंने प्रमाद से मल मास को खली बिता दिया , उनका जीवन मनुष्य लोक में दारिद्र्य , पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निन्दित हो जाता है इसमें संदेह नहीं |”

�� सुगन्धित चन्दन , अनेक प्रकार के फूल , मिष्टान्न , नैवैद्द्य , धुप दीप आदि से लक्ष्मी सहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें | घंटा , मृदंग , और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चन्दन से आरती करें | ये न हों तो रुई की बत्ती से ही आरती करें | इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है | चन्दन , अक्षत , और पुष्पों के साथ तांबे के पात्र में पानी रख कर भक्ति से प्रातः पूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें | अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके
��  इस मंत्र को बोलें  ��

�� देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक |‍‌‍
गृहाणार्घ्यंमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि ||
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेऽमिततेजसे |
नमोस्तुते श्रीयानन्त दयां कुरु ममोपरि ||

�� ‘हे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव ! मुझ पैर कृपा केर के इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये | तुझ स्यम्भु के लिए नमस्कार तथा तुझ अमित तेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार | हे अनंत ! लक्ष्मीजी के साथ आप मुझ पैर कृपा करें | ’

�� मल मास का व्रत दारिद्रय , पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है | चतुर्दशी के दिन उपवास केर अंत में उद्द्यापन करने से मनुष्य सब पापों से छुट जाता है | यदि दारिद्रय हो तो व्यतिपात योग में , द्वादशी पूर्णिमा , चतुर्दशी , नवमी और अष्टमी के दिन शोक विनाशक उपरोक्त व्रत को करना चाहिए जो उपचार मिल जाये उनसे ही यह कर ले |

�� मलमास में संध्योपासन , तर्पण , श्राद्ध , दान , नियम व्रत ये सब फल देते हैं | इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं |

�� विधिवत सेवते यस्तु पुरुषोत्तममादरात् |
कुलं स्वकीयमुद् धृत्य मामेवैष्यत्यसंशयम् ||

�� प्रति तीसरे वर्ष में पुरुषोत्तम मास के आगमन पर जो व्यक्ति श्रद्धा- भक्ति के साथ व्रत , उपवास , पूजा आदि शुभकर्म करता है , निःसंदेह वह अपने समस्त परिवार के साथ मेरे लोक में पहुँच कर मेरा सानिध्य प्राप्त करता है

�� इस महीने में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप , सत्संग व सत्कथा –श्रवण , हरिकीर्तन , व्रत, उपवास स्नान , दान या पूजनादि किये जाते हैं , उनका अक्षय फल होता है और व्रती के संपूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं | निष्काम भाव से किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यंत श्रेष्ठ समय है| देवी भगवत के अनुसार यदि दान आदि का सामर्थ्य न हो तो संतों- महापुरुषों की सेवा सर्वोत्तम है , इससे तीर्थ स्नानादि के सामान फल होता है |

�� अधिक मास में वर्जित  ��

�� इस मास में सभी सकाम कर्म एवं व्रत वर्जित हैं |जैसे – कुएँ , बावली , तालाब और बाग आदि का आरम्भ तथा प्रतिष्ठा , नवविवाहिता वधु का प्रवेश , देवताओं का स्थापन (देवप्रतिष्ठा) , यज्ञोपवित संस्कार , विवाह , नामकर्म , मकान बनाना , नए वस्त्र और अलंकार पहनना आदि |

�� अधिक मास में करने योग्य ��

�� प्राणघातक रोग आदि की निवृत्ति के लिए रुद्रजाप आदि अनुष्ठान , दान व जप कीर्तन आदि , पुत्रजन्म के कृत्य , पित्रिमरण के श्रद्धादी तथा गर्भाधान , पुंसवन जैसे संस्कार किये जाते हैं |
�� विशेष - बरकत बढ़ाने के लिए अधिक मास मे क्या करे केवल
  �� ~ सुबह के हिन्दू पंचाग~ �� मे ओडियो सहित सुने
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भारतवर्ष में गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ? कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद


1858 में Indian Education Act बनाया गया।
इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन
उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के
शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके
पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के
बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक
अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas
Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग
समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है
ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और
Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था,
उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और
उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले
का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के
लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और
सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से
ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह
“अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और
तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग
से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश
की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम
करेंगे और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है:
“कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले
पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे
जोतना होगा और
अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।”
इसलिए उसने सबसे पहले
गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल
गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने
वाली सहायता जो समाज के तरफ से
होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत
को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के
गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग
लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-
पीटा, जेल में डाला।
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ
करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50
हजार’, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये
जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में
‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18
विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के
लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और
इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।
इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और
फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित
किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल
खोला गया, उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’
कहा जाता था, इसी कानू न के तहत भारत में
कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई
यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई
गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के
यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने
पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर
चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि:
“इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में
तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और
इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा,
इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा,
इनको अपने
परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा,
इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे
होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से
अंग्रेजियत नहीं जाएगी।”
उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब
साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट
की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में
शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब
पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे
अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब
क्या पड़ेगा।
लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय
भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11
देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये
कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में
भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन
अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में
नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे।
ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल
की भाषा अरमेक थी। अरमेक
भाषा की लिपि जो थी वो हमारे
बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के
कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त
राष्ट संघ जो अमेरिका में है
वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है,
वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है
उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले
की रणनीति थी।

सोहम साधना या स्वसो स्वास की साधना

NARAYAN NARAYAN

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बापूजी के सत्संग से :-
पूज्य बापूजी -- संकल्प-त्याग करने
का अभ्यास करने से निश्चय ही
भगवान मिल जाते हैं – इसका मैं ठेका
लेता हूँ।

दो स्वासो के बीच की अवस्था
निसक्ल्प अवस्था होती है

पहली जब अन्दर गया स्वास बाहर आने से पूर्व
ठहरा तब दूसरी जब स्वास बाहर आकर खाली हो गया दूसरा स्वांस आने के पूर्व
का समय तब

साधना चालू होते ही संकल्प
विकल्प कम होने लगते हैं

पांचो शरीरों के पार की आत्मा की ओर
की यात्रा होने लगती है

जीभ तालू में लगादो ( तालू में सुमृति
नाड़ी होती है ) ज्ञानमुद्रा
( तर्जनी उंगली अंगूठे से मिला दो )
में बैठो द्रष्टि नाक
की नोक (नासाग्रह) पर लगा दो

साँस अन्दर जाय तो ॐ बाहर आये
तो 1 फिर अन्दर जाय तो शांति
बाहर आये
तो 2 फिर अन्दर जाय तो ॐ बाहर
आये तो 3
फिर अपने आप को खोजो मैं कोन हूँ
या अपने अहं को खोजो की कहाँ
रहता है ।

जो खोज रहा है उसी को खोज लें ।
बापूजी बोलते हैं ये सबसे मधुर संगीत है

सत्संग में सुना है की बापूजी का ये
जप
तो हर समय चलता ही रहता है केवल
जब वो बोलते हैं बस तभी ही जप
रुकता है ।

एक बार स्वामी लीलाशाजी जी
भगवान ने बापू जी की पत्तनी
(माता लक्ष्मी देवी )
के सर पर हाथ रख दिया था और
उनकी भी ये ही साधना अपने आप
चालू हो गयी ।

दीक्षा के समय भी ये साधना
बापूजी रोज करने को बोलते हैं इसमें
कोई भी नियम नहीं है ।

आप बस में ट्रेन में यात्रा कर रहे
हो या किसी ऑफिस में घर में
दुकान
में हो या कही और हो ये करे जरुर ।

ये योगियो की गुप्त शाम्भवी
मुद्रा है
इससे संत कबीर गुरुनानक जी महावीर
गौतम बुद्ध और भी कई महापुरषो ने
संत्तव को निखारा है

बिल्क के सम्राट इब्राहीम का
सत्संग
भी सुना है बापू की सत्संग की cd
( अहम् को खोजा तो ईश्वर मिला )
में।

उसमे इब्राहीम ये साधना से सुबह
4 :00 बजे से चालू की और सुर्योदय
तक ईश्वर प्राप्ति कर ली ।

जो खोज रहा है उसी को खोज लें ।

रात्रि को सोते समय अगर ये जप करते
करते सो जाये तो योग निद्रा में
प्रवेश हो जाता है

इस साधना के विषय में dvd गुरुप्रसाद
में भी विस्तृत सत्संग है
बापूजी इसे राज मार्ग कहते हैं ।

इस साधना से कई गंभीर रोगों से
भी बचाव होता है

यदि जीभ को दातों के मूल में ( जड़
में ) लगाकर जप किया जाय
तो स्वास्थ्य लाभ होता है

माला स्वासो स्वास की भगत जगत
के बीच जो फेरे सो गुरुमुखी ना फेरे
सो नीच
जिनके निचले कर्म हैं वो ये
साधना नहीं कर सकते

और जो ये साधना करेंगे
वो जल्दी ही गन्दी आदतों से बाहर
आ जायेंगे ।

नानक जी इस साधना के विषय में
कहा
निर्भव जपे सकल भव मिटे संत कृपा ते
प्राणी छूटे ।

जिन खोजा तिन पाइया

****************************
ये आगे का बापूजी का सत्संग है की
नहीं ये मुझे नहीं पता
काकभूषण जी और वशिष्ठ जी का
संवाद :-

सोहम या स्वसोस्वास की साधना
अर्थात स्वासों को गिनना प्राण
कला की साधना है

इसमें प्राणों का अनुसन्धान करके
प्राणों के आने जाने के संधि स्थान में
आया जाता है

अर्थात प्राणों के आने जाने के बीच
में केवली कुम्भक को बढ़ाया जाता
है
प्राणों के आने जाने के बीच की
स्थिति जो है वो आत्मतत्व है
जब अभ्यास करते हैं तो प्राण
शिथिल होते जाते हैं।

इसके प्रभाव से
मन भी शिथिल होता जाता है
क्यूंकि मन ओर पराण एक दुसरे के पूरक हैं
जहा प्राण है वहा मन है
जहा मन है वहा प्राण है

कुछ ही दिनों के अभ्यास से प्राण
धीरे चलने लगेगा और एक समय बाद
कमहोते होते प्राण हृदय में लीन हो
जायेंगे

जब प्राण हृदय में नष्ट हो जायेंगे
अर्थात विलीन हो जायेंगे तो मन
भी जो प्राणों के सहारे चलता है
विलीन हो जायेगा

और हृदय में जो चैतन्य है उसका
साक्षात्कार हो जायेगा।

स्वास लेते समय सो की भावना और
छोडते समय हम की भावना करे
या swasoswas गिने और गुरुभगवान
का सत्संग सुने उनके बताये अनुसार
साधना करे तो साक्षात्कार हो
जाता है


NARAYAN NARAYAN —

रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे का कृष्ण प्रेम

रोनाल्ड निक्सन जो कि एक अंग्रेज थे कृष्ण प्रेरणा से ब्रज में आकर बस गये …

उनका कन्हैया से इतना प्रगाढ़ प्रेम था कि वे कन्हैया को अपना छोटा भाई मानने लगे थे……

एक दिन उन्होंने हलवा बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया पर्दा हटाकर देखा तो हलवे में छोटी छोटी उँगलियों के निशान थे ……

जिसे देख कर 'निक्सन' की आखों से अश्रु धारा बहने लगी …

क्यूँ कि इससे पहले भी वे कई बार भोग लगा चुके थे पर पहलेकभी ऐसा नहीं हुआ था |

और एक दिन तो ऐसी घटना घटी कि सर्दियों का समय था, निक्सन जी कुटिया के बाहर सोते थे |

ठाकुर जी को अंदर सुलाकर विधिवत रजाई ओढाकर फिर
खुद लेटते थे |

एक दिन निक्सन सो रहे थे……

मध्यरात्रि को अचानक उनको ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें
आवाज दी हो...  दादा ! ओ दादा !

उन्होंने उठकर देखा जब कोई नहीं दिखा तो सोचने लगे हो
सकता हमारा भ्रम हो, थोड़ी देर बाद उनको फिर सुनाई दिया....  दादा ! ओ दादा !

उन्होंने अंदर जाकर देखा तो पता चला की वे ठाकुर जी को रजाई ओढ़ाना भूल गये थे |

वे ठाकुर जी के पास जाकर बैठ गये और बड़े प्यार से बोले...

''आपको भी सर्दी लगती है क्या...?''

निक्सन का इतना कहना था कि ठाकुर जी के श्री विग्रह से आसुओं की अद्भुत धारा बह चली...

ठाकुर जी को इस तरह रोता देख निक्सनजी भी फूट फूट कर रोने लगे.....

उस रात्रि ठाकुर जी के प्रेम में वह अंग्रेज भक्त इतना रोया कि उनकी आत्मा उनके पंचभौतिक शरीर को छोड़कर बैकुंठ को चली गयी |

**********

हे ठाकुर जी ! हम इस लायक तो नहीं कि ऐसे भाव के साथ आपके लिए रो सकें.....

पर फिर भी इतनी प्रार्थना करते हैं कि....

''हमारे अंतिम समय में हमे दर्शन भले ही न देना पर……

अंतिम समय तक ऐसा भाव जरूर दे देना जिससे आपके लिए तडपना और व्याकुल होना ही हमारी मृत्यु का कारण बने....''.

बोलिये वृन्दावन बिहारी लाल की जय

((((((((((((((जय जय श्री राधे))))))))))))))
1- कृष्ण के नैन = हमारा चैन !
2- कृष्ण का मस्तक = हमारे भाग्य की दस्तक !
3- कृष्ण का मुख = हमारा सूख !
4- कृष्ण के कान = हमारा ध्यान !
5- कृष्ण का दिल = हमारी मंज़िल !
6- कृष्ण के हाथ = हमारे साथ !
7- कृष्ण के चरण = हमारी शरण !
8- कृष्ण की नाक = हमारी साख !
9- कृष्ण का गला = हमारा भला !
10- कृष्ण की आत्मा = हमारे दुखो का खात्मा !!
जय हो बाकेँ बीहारी जी की����������������

पुरुषोत्तम मास की उत्पत्ति कथा

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हर वैष्णव को यह पढना ही चाहिये***
प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है. इसलिए देव कार्य, शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है.
इससे दुखी होकर स्वयं मलमास (अधिक मास) बहुत नाराज व उदास रहता था, इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी. मलमास को सभी ने असहाय, निन्दक, अपूज्य तथा संक्रांति से वर्जित कहकर लज्जित किया. अत: लोक-भत्र्सना से चिन्तातुर होकर अपार दु:ख समुद्र में मग्न हो गया. वह कान्तिहीन, दु:खों से युक्त, निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा.
और मलमास बोला - हे नाथ, हे कृपानिधि ! मेरा नाम मलमास है. मैं सभी से तिरस्कृत होकर यहां आया हूं. सभी ने मुझे शुभ-कर्म वर्जित, अनाथ और सदैव घृणा-दृष्टि से देखा है. संसार में सभी क्षण, लव, मुहूर्त, पक्ष, मास, अहोरात्र आदि अपने-अपने अधिपतियों के अधिकारों से सदैव निर्भय रहकर आनन्द मनाया करते हैं. मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है, न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ ऐसा कहकर वह शान्त हो गया.
तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए. वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्ण जडि़त आसन पर बैठे थे. गोपियों से घिरे हुए थे.
भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा - कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं.
तब श्रीकृष्ण ने कहा - हे हरि! आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो. जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है. इसे मैं अपने ही समान करूंगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे. मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं मलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा.
यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा. मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं. जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे.इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा.
यह इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा. यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा. जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझ को प्राप्त होगा.

सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य होगा. इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा. जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगे और जो धर्म काmh आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे. अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा.
इसलिए हे रमापते! आप पुरुषोत्तम मास को लेकर बैकुण्ठ को जाओ.’
इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठ बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया. अत: श्रीकृष्ण से वर पाकर इस भूतल पर वह पुरुषोत्तम नाम से विख्यात हुआ.
इस साल अधिकमास (मलमास) पड़ने के कारण लगभग सभी व्रत और त्योहार आम सालों की अपेक्षा कुछ जल्दी पड़ेंगे. २०१५ में अधिकमास अर्थात पुरुषोत्तम मास के कारण दो आषाढ़ होंगे |

17 जून से 16 जुलाई पुरुषोत्तम मास ह

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⛳बात केवल संत आशारामजी बापू की नहीं है, तमाम साधु-संतों की है ।

⛳मैं दावा कर सकता हूँ कि अगर यह लडाई आपने नहीं जीती तो साधु-संतों के बाद ऐसा सामाजिक कार्यकर्ता जो स्वदेश और देश-धर्म की बात करता है उसका नम्बर लगना तय है ।

⛳आज आशारामजी बापू हैं, कल आप और हम हैं ।  यह लडाई खत्म हुई, ऐसा नहीं है । अब यह लडाई शुरू हो चुकी है और यह लडाई तब तक जारी रहनी चाहिए, जब तक इस देश के खिलाफ षड्यंत्र खत्म नहीं होता ।
⛳इस देश में पहली बार ऐसा हुआ है कि किन्हीं संत पर कार्यवाही हुई और उनके लाखों भक्त सडकों पर आये हैं ।
��- श्री सुरेश चव्हाणके,
चेयरमैन, ‘सुदर्शन चैनल

देखिये वीडियो
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�� - https://youtu.be/jMistlu5J5s

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प्रेस नोट

��✏✏ - पटना उच्च न्यायालय ने दीपक चौरसिया (एडिटर-इन-चीफ,इंडिया न्यूज टीवी चैनल)को न्यायालय में 18 जून 2015 को उपस्थित होने के लिए  सम्मन जारी किया है...

����अपने क्षेत्रीय अख़बारों में ये प्रेस नोट छपवा सकते हैं����

प्रेस विज्ञप्ति 
धार्मिक भावनाओं को आहत किये जाने के कारण दीपक चौरसिया (एडिटर-इन-चीफ, इंडिया न्यूज टीवी चैनल) और अन्य लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज | 
दीपक चौरसिया एवं अन्य के खिलाफ पटना शहर न्यायालय द्वारा जारी किया गया सम्मन 
संत श्री आशाराम जी बापू पर झूठे एवं बेबुनियाद बलात्कार के आरोप लगने के बाद इंडिया न्यूज़ टीवी चैनल के दीपक चौरसिया ने संत श्री आशाराम जी बापू को बदनाम करने के लिए अभियान शुरु किया था | झूठे एवं मनगढ़ंत न्यूज़ एवं “ गैंगऑफ़ आसाराम “ इत्यादि, कार्यक्रमों को इस कुप्रचार अभियान का आधार बनाया गया जबकि पुलिस द्वारा अभी तक इस प्रकार के कोई भी आरोप संत श्री आशाराम जी बापू पर नहीं लगाये गए थे |  
यह एक जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण आशय से दीपक चौरसिया एवं अन्य द्वारा स्वार्थपूर्ण एवं कुटिल अपराधिक उद्देश्य से संत श्री आशाराम जी बापू की भारत के सामान्य जनता के सामने छवि को ख़राब करने एवं करोड़ों शिष्यों की धार्मिक भावनाओं को आहत एवं उन्हें अपमानित करने का प्रयास किया है | बिकाऊ एवं एक तरफा न्यूज़ दिखाना दीपक चौरसिया एवं उसकी कंपनी के लिए आम बात है | 
इसी कारण पटना के रहने वाले श्री दिलीप कुमार ने जिनकी धार्मिक भावना को ठेस पहुंची थी, उन्होंने पटना शहर के कोर्ट में दीपक चौरसिया एवं अन्य आरोपी जिनमे इंडिया न्यूज़ चैनल के मालिक एवं निर्देशक भी सम्मलित है,  उनके खिलाफ 15 मई 2014 को शिकायत दर्ज कराई |  
पटना सिटी कोर्ट के न्यायालय ने सारी शिकायत को सुनकर एवंइसकी गंभीरता को देखतेहुए 18 जून2015 को सभी आरोपीगण जिनमे दीपक चौरसिया इंडिया न्यूज़ चैनल के मालिक एवं निर्देशक भी सम्मलित है, उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 298 एवं 508 के तहत सम्मन जारी किया है | 
युवा सेवा संघ  
( संत श्री आशारामजी बापू की युवा शक्ति ) 
 
 

भारतीय मनोविज्ञान कितना यथार्थ !

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक डॉ. सिग्मंड फ्रायड स्वयं कई शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रस्त था। 'कोकीन' नाम की नशीली दवा का वो व...