2019 का लोकसभा का चुनाव: भारत और उसके हिन्दुओ के अस्तित्व की रक्षा का निर्णायक युद्ध है?

मैंने कुछ दिनों पहले, आज से करीब 160 वर्ष पूर्व, हेनरी क्नॉक्स द्वारा लिखा हुआ यह पढ़ा था,

"Something is wanting, and something must be done, or we shall be involved in all the horror of failure, and civil war without a prospect of its termination."
@Henry Knox

इसका हिंदी में अनुवाद कुछ इस तरह है कि,

"सिर्फ आज का ही समय हमारे पास है, अभी भी सम्भल जाओ, नही तो भयानक गलती करते हुए, गृहयुद्ध की तरफ चले जाओगे, जिसका रुकना असंभव हो जायेगा।"

19वीं शताब्दी के मध्य में, अमेरिका के गृहयुद्ध के शुरू होने से पहले, हेनरी क्नॉक्स ने अमेरिका के दक्षिणी राज्यों के दास स्वामियों और उनका समर्थन कर रहे राजनीतिज्ञों, न्यायाधीशों, व्यापारियों, बुद्धजीवियों और शासन तन्त्र में बैठे लोगो को जो, भविष्य की भयानकता का दर्शन कराने वाले, चेतावनी भरे वाक्य बोले थे, वो आज डेढ़ शताब्दी बाद, भारत के वर्तमान के राजनैतिक व सामाजिक परिदृश्य में सोलह आना ठीक बैठते है।

जैसे जैसे भारत, 2019 में एक बार फिर नई सरकार के चुनाव की तरफ बढ रहा है वैसे वैसे भारत, उसकी संवैधानिक आत्मा व उसके हिन्दुओ को तोड़ने व उसके मान को कुचले जाने के प्रयासों में तीव्रता आगयी है। यह सब जो कुछ हो रहा है वह कोई बाहर से आकर नही कर रहा गया बल्कि यह अंदर ही पाली पोसी गयी शक्तियाँ है, जो भारत व हिंदुओं के अस्तित्व के काल के रूप में, पोषित की गई है। यह जो हो रहा है वो अराजक जरूर है लेकिन यह सब भारतीय न्यायपालिका द्वारा वैध रूप से संरक्षित है।

आज जिस निर्लज्जता से न्यायालय के धीशों द्वारा, भारत के संविधान प्रदत्त अधिकारों की सीमाओं को नेपथ्य में ठकेलते हुये, भारत व हिन्दुओ की आत्मा पर कुठारघात किया जाने लगा है, वह न सिर्फ अविश्वनीय है बल्कि ऐसा कोई दूसरा उदाहरण विश्व भर में नही मिलता है। भारत की जनता के प्रति किसी भी उत्तरदायित्व से स्वयं को मुक्त रख, परिवारवाद के समर्थक माननीयों ने न्याय के तन्त्र को उस स्तर पर पहुंचा दिया जहां से ये विघटनकारी तत्वों के प्रतिबिंब होने का भान देते दिख रहे है।

भारत मे जो उथल पुथल हो रही है और जो राष्ट्रवादियों/हिन्दुओ में न्याय द्वारा उद्दंडता से, उनसे अन्याय किये जाने की बेचारगी क्रंदन कर रही है, वो उस काल के सन्निकट होने की तरफ इशारा कर रही है, जो उन घटनाओं की श्रंखला को जन्म देगी, जहां लोकतंत्र का अपमान कर, न्याय को दूषित करने वालों के अस्तित्व को जनता से ही चुनौती मिलेगी।

मुझे यह यकीन होता जारहा है कि केंद्र की वैधानिक रूप से निर्वाचित, संघीय ढांचे की सरकार का, जिस घृष्टता से कांग्रेसियों, वामपंथी सेक्युलरो, माओवादियों, न्यायाधीशों और विदेशी शक्तियों के दासों द्वारा तिरस्कार किया जारहा है, वो अपने अंतिम चरण में गिद्धों और सियारो को न्योता देने वाला सिद्ध होगा।

भारत और उसके हिन्दुओ के दर्शन व आस्था के विरुद्ध खड़ा भारत का एक वर्ग, एक के बाद एक, ऐसी गलतिया करता जा रहा है जहाँ से मुझे उसकी वापसी की सारी गुंजाइशें खत्म होती दिख रही है।

जबसे केंद्र में भारत की प्रथम राष्ट्रवादी सरकार आयी है तभी से, भारत के संघीय और संवैधानिक ढांचे को चरमरा कर, भारत को घुटने के बल ले आने का प्रयास तेजी से होरहा है। यह एक अंतराष्ट्रीय एजेंडा है जिसे भारत के विपक्ष को ढाल बनाकर, वैटिकन चर्च, चीन, वहाबी इस्लाम और भारत को सिर्फ बाजार बनाये रखने वाली शक्तियां अपनी सहभागिता दे रहे है।

इन बाह्य शक्तियों के आंतरिक सहायक, भारतीय वामपंथी, माओवादी, कांग्रेसी और विदेशी पैसो से पलने वाले मानवतावादी और बुद्धजीवी है, जो अपने छद्दम बुद्धजीविता के विकार से उत्पन्न, अहम और दम्भ में, भारत से देश द्रोह को सामाजिक प्रतिष्ठा और मान्यता दिलाने की भूल कर बैठे है। आज जब यह लोग, अपने पिछले 4 वर्षों के प्रयास में सफलता न मिल पाने से अवसाद ग्रसित है तब न्यायपालिका में घुसे इनके सहयोगियों को निष्पक्षता का चोला उतार कर, उनको संजीवनी व प्रश्रय देना पड़ रहा है।

जब न्याय और लोकतंत्र की व्याख्या करने वाले यह माननीय चिदंबरम को स्टे पर स्टे देकर, जेल जाने से बचा रहे हो तो वे भृष्टाचार में सहयोगी नही है?

जब नेशनल हेरोल्ड केस में जमानत लिये घूम रही सोनिया और राहुल गांधी को माननीय, न्यायिक प्रक्रिया को खींच खींच कर, उनको जेल भेजने से शर्मा रही है तो वे 10 जनपथ के पोषित नही है?

हिन्दू आस्थाओं और मान्यताओं पर क्रूरतम प्रहार करने वाले माननीय, हिन्दू विरोधी शक्तियों के सहयोगी नही है?

आधुनिक आयुद्धो से सम्पूर्ण जिस लड़ाकू विमान राफ़ेल के भारतीय वायुसेना में शामिल होने से चीन और पाकिस्तान परेशान है और उससे सम्बंधित गोपनीय जानकारी को प्राप्त करने के लिये वे प्रयासरत है, उसको माननीयों द्वारा सर्वजिनिक पटल पर लाना, उन्हे भारत के शत्रु देशों पाकिस्तान व चीन का हितैषी नही बनाता है?

भारत के प्रधानमंत्री की हत्या की योजना बनाने वालों को, हत्या जैसे जधन्य अपराध का प्रत्यक्ष दोषी न मान कर, माननीय जेल भेजने की जगह उन्हें घर की सुविधाओं मे ही कैद रखने का निर्णय देती है तो प्रधानमंत्री की हत्या के पक्षधर नही है?

बलात्कारी बिशप को 15 दिन में जमानत पर छोड़, मुख्य गवाह को मरने के लिये छोड़ देने वाले माननीय धृतराष्ट्र नही है?

ये न्याय किस बौद्धिकता का दर्शन करा रहा है?

इसमें कभी भी कोई दो राय नही हो सकती है कि कोई भी राष्ट्र, गृहयुद्ध कभी भी नही चाहता है और वह हर संभव प्रयास कर उसको टालना चाहता है लेकिन जब संवैधानिक दीवारों और बहुसंख्यको की अस्मिता को तोड़ने, न्याय के आलयों से आते पदचाप, सुनाई पड़ते है तब राष्ट्र, चाह कर भी उस गृहयुद्ध से वापस नही लौट सकता है।

अब वह समय आगया है कि जब हम लोगो को यह तय करना है की गृहयुद्ध से बचा जाये या फिर उसी में भारत को ध्वस्त हो जाने दिया जाये। इसको हम तभी टाल सकते है जब हम 2019 में माननीयों व उनके द्वारा परिवारवाद से ग्रसित बनाये गये न्यायिक तन्त्र के विरुद्ध जनमत देकर, 400 सीटों से ऊपर की नरेंद्र मोदी जी की सरकार बनाये और पूरे तन्त्र को ही बदल डाले अन्यथा 2019 भारत व हिन्दुओ के लिये 712 साबित होगा जब मोहमद बिन कासिम ने सिंध में राजा दाहिर को हरा कर भारत व उसके हिंदुओं को पहली बार गुलाम बनाया था।

गया में पिण्डदान से प्रेतयोनि से मुक्ति ( सत्य घटना)

गया में पिण्डदान से प्रेतयोनि से मुक्ति
सत्य घटना
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  श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार कल्याण में श्राद्ध पर सविशेष लिखते थे और श्राद्ध करने पर बहुत जोर देते थे। एक उच्चशिक्षित बुद्धिवादी सज्जन ने  यह पढ़ कर सोचा कि शायद हनुमानप्रसादजी ब्राह्मण हैं,अतः श्राद्ध पर जोर देते हैं। उक्त सज्जन श्राद्ध को अंधविश्वास समझते थे। एक बार वे गोरखपुर आये और भाईजी से मिल कर इस पर चर्चा करने का निश्चय किया। अतः वे गीतावाटिका में भाईजी के निवास स्थान पर पहुंच गये। उन्होंने श्राद्ध पर चर्चा शुरू करते हुए इसको ढकोसला बताया और भाईजी से कहा कि आपको बिना किसी पुष्ट प्रमाण इस प्रकार के अंधविश्वास का प्रचार नहीं करना चाहिये। जो व्यक्ति मर गया है, उसके नाम पर अन्नादि देने से उसको वह कैसे मिल सकता है?
   भाईजी उनकी बातों को शांतिपूर्वक सुनते रहे और फिर कहा कि मैं कल्याण में कोई बात तभी लिखता हूं जब मेरे पास उसका प्रमाण हो। श्राद्ध के विषय में मेरे पास एक ऐसा पुष्ट प्रमाण है कि मैं उसके सामने दुनिया के किसी भी व्यक्ति की बात को मानने के लिये तैयार नहीं हूं।
उक्त सज्जन ने कहा---बताइये, वह क्या प्रमाण है। मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप सत्यवादी व्यक्ति हैं । आप झूठ नहीं बोल सकते।
भाईजी ने कहना प्रारम्भ  किया---बात उन दिनों की है जब मैं मुम्बई में व्यापार करता था। शाम को भोजन करने के बाद मैं चौपाटी पर चला जाता था और वहां पर रखी बेंच पर बैठ कर भगवन्नाम जप करता था।एक दिन की बात है। रात हो गई थी। मैं बेंच पर नाम जप कर रहा था। मैंने देखा कि मेरे सामने एक सज्जन खड़े हैं। बहुत समय हो गया तब मैंने उनसे कहा-- श्रीमान् जी बैठ जाइये , खड़े क्यों हैं? अब उन सज्जन ने जवाब दिया-- देखिये, घबराइये मत, मैं प्रेत हूं,  मेरी मृत्यु हो चुकी है,मनुष्य नहीं हूं। प्रेत का नाम सुनते ही मेरे तो पसीना छूटने लगा। प्रेत ने कहा-- मैं आपका कोई अनिष्ट नहीं करूंगा । आपको एक धार्मिक सज्जन समझ कर आपके पास आया हूं। आप मेरा एक काम कर दीजिये। गयाजी में मेरा श्राद्ध पिण्ड दान करवा दीजिये। इससे मुझे इस कष्टपूर्ण प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जायगी। पूर्वजन्म में मैं पारसी था। प्रेतों की कई श्रेणियां होती है। जब तक कोई मेरे से बात नहीं करता, मैं बोल नहीं सकता। आपने पहले मेरे से बात की तब मैं बोल सका हूं।
मैंने कहा, पारसी तो श्राद्ध एवं गया पिण्डदान में विश्वास नहीं करते, फिर आप मुझे श्राद्ध पिण्ड दान के लिये क्यों कह रहे हैं? प्रेत ने कहा, सत्य अगर सत्य है तो वह सभी पर लागू होता है। किसी एक धर्म विशेष से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।
मैंने मुम्बई में उनके निवास स्थान का पता पूछा, पारसी प्रेत ने अपने निवास का पूरा पता बता दिया। इसके बाद वह प्रेत अन्तर्धान हो गया।
दूसरे दिन मैंने प्रेत के बताये गये पते पर जांच की तो सब बातों को सत्य पाया। कुछ दिन पहले वहां एक पारसी सज्जन की मृत्यु हुई थी। मेरे एक मित्र थे हरिरामजी ब्राह्मण। मैंने उनको पारसी प्रेत का श्राद्ध पिण्डदान करने के लिये गयाजी भेजा। हरिरामजी ने गयाजी जाकर शास्त्रोक्त विधि से पारसी प्रेत का पिण्डदान कर दिया। जिस दिन पिण्डदान किया, उसी दिन रात्रि में वह प्रेत वापस मेरे सामने प्रकट हुआ। प्रेत ने कहा, आपने मेरा काम कर दिया, मैं आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये आया हूं। गयाजी में पिण्डदान से मेरी प्रेतयोनि से मुक्ति हो गई है। अब मैं ऊपर के लोक में जा रहा हूं। मैंने फिर प्रेत से कई बातें पूछीं। मैंने पूछा-- क्या स्वर्ग नरक सत्य है? प्रेत ने कहा, हां सब सत्य है। प्रेत ने और भी कई बातें बताई जो हमारे शास्त्रों में लिखी हुई है। प्रेत ने कहा, शास्त्रों की बातें ऐसी हैं मानो हमारे ऋषियों ने परलोक को अपनी आंखों से देख देख कर लिखा है। प्रेत ने बताया कि किसी के प्रति वैर रख कर मरने वाले की परलोक में बड़ी दुर्गति होती है। व्यभिचारी की भी बहुत दुर्गति होती है। और भी कई बातें बताईं जिनको मैं अभी सबके सामने प्रकठ नहीं कर सकता।
भाईजी की बात सुनकर वे सज्जन गद्गद हो गये और भाईजी को प्रणाम कर लौट गये।
( त्रुटि के लिये क्षमा करें 🙏)
-----------प्रस्तुतिः बीएल परिहार

वे भगवान हमारे हृदय मे प्रकाशित हो !

वे भगवान हमारे हृदय मे प्रकाशित हो !  🙏

वे इतने सहज है की वो हम हो जाते है हम वो हो जाते है ! 🕉

प्राणी मात्र के आत्मा है वे परमेश्वर ... उनका कोई आदि नही अंत नही ... अनादि अनंत है !  🕉

वे हमारे मन को जानते है .. बुद्धि को जानते है विचारों को जानते है .. 🙏

वे परमात्मा निकट से निकट है .. और दूर से दूर है !  🙏

वे परमेश्वर हमारी बुद्धि और चित्त की रक्षा करें !  🙏🕉🙏

https://youtu.be/HPYWrGeH2XA

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*बलात्कर केस मामलों में न्यायालय ने माना कि 90 प्रतिशत मामले झूठे होते हैं...*

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सितम्बर 25, 2017

🚩नारियों की सुरक्षा हेतु बलात्कार-निरोधक नये कानून बनाये गये । परंतु दहेज विरोधी कानून की तरह इनका भी भयंकर दुरुपयोग हो रहा है । दो दिन पहले प्रतापगढ़ जिला एवं सेशन न्यायाधीश राजेन्द्र सिंह ने बताया कि दलालों द्वारा प्रतिवर्ष काफी संख्या में बालिकाओं तथा महिलाओं द्वारा दुष्कर्म के प्रकरण दर्ज कराए जाते हैंं। जिसमें अनुसंधान के बाद अभियुक्तों के विरूद्ध आरोप पत्र प्रस्तुत किए जाते हैं। न्यायालय में गवाही के दौरान 90 प्रतिशत मामलों में पीडि़ताएं मुकर जाती हैं। जिसमें खेत, सम्पत्ति व रास्ते की रंजिश, पारिवारिक अथवा अन्य कारणों से अथवा अभियुक्त को ब्लेकमेल कर रुपए ऐंठने के लिए झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाई गई थी, ऐसी स्थिति बताती है। पीडि़ताएं न्यायालय में स्वयं के द्वारा दी गई रिपोर्ट का भी समर्थन नहीं करती हैं ।

🚩न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रकरण दर्ज करवाए जाने से बयान करवाए जाने तक सब कुछ पूर्व निर्धारित होकर न्यायिक प्रक्रिया का पूर्णत: दुरूपयोग किया जा रहा है।

🚩वर्तमान में हिन्दू साधु-संतों पर बलात्कार का आरोप लगने में बाढ़ सी आ गई है और मीडिया उनको खूब बदनाम कर रही है लेकिन आपको बता देते हैं कि षडयंत्र के तहत कैसे साधु-संतों पर झूठे आरोप लगाए जाते है।

🚩दस साल से स्वामी चिन्मयानंद के आश्रम में रहने वाली साध्वी चिदर्पिता ने बी पी गौतम के नाम के व्यक्ति से प्रेम विवाह कर लिया उसके बाद शाहजहापुर की कोतवाली में स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ रेप का आरोप लगाया और इतना गंदे गंदे आरोप लगाये कि यहाँ पर लिखने पर शर्म महसूस हो रही है, मीडिया ने भी स्वामी की खूब बदनामी की, लेकिन आठ महीने साध्वी अपने प्रेमी पति के साथ रही जब उससे झगड़ा हो गया तो फिर से आश्रम में रहने लगी और बोली कि मैंने दबाव में आकर उनके खिलाफ केस किया था ।

🚩गुजरात द्वारका के स्वामी #केशवानंदजी पर कुछ समय पूर्व एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया और न्यायालय ने 12 साल की सजा भी सुना दी लेकिन जब दूसरे जज की बदली हुई तब देखा कि ये मामला झूठा है, स्वामी जी को फंसाने के लिए झूठा मामला दर्ज किया गया है, तब स्वामी को न्यायालय ने 7 साल के बाद निर्दोष बरी किया ।

🚩ऐसे ही दक्षिण भारत के स्वामी #नित्यानन्द जी के ऊपर भी फर्जी सेक्स सीडी बनाकर रेप का आरोप लगाया गया और उनको जेल भेज दिया गया बाद में उनको हाईकोर्ट ने क्लीनचिट देकर बरी कर दिया ।

🚩ऐसे ही हाल ही में #शिवमोगा और बैंगलोर मठ के शंकराचार्य राघवेश्वर भारती स्वामीजी से एक #गायिका ने 3 करोड़ रुपये मांगे, नही देने पर 167 बार बलात्कार करने का आरोप लगाया ।
उनको भी न्यायालय ने झूठा मामला देखकर शंकराचार्य जी को निर्दोष बरी कर दिया ।

🚩सुप्रसिद्ध हस्तियों को अपने जाल में #फँसाकर करोड़ों रूपये एठने का धंधा चल पड़ा है और नहीं देने पर उन पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें #जेल भेजने की कोशिश की जाती है।

🚩इसी प्रकार का मामला सामने  है बापू #आसारामजी और उनके बेटे #नारायण साईं का ।
उन पर #अक्टूबर 2013 में प्राथमिकी दर्ज की गई कि उनकेे आश्रम में रहने वाली सूरत गुजरात की 2 महिलायें, जो सगी #बहनें हैं, उनमें से बड़ी बहन ने बापू आसारामजी के ऊपर 2001 में और छोटी बहन ने नारायण साईं जी पर 2003 में #बलात्कार हुआ , ऐसा आरोप लगाया है ।

🚩किसके दबाव में आकर 11/12 साल पुराना केस दर्ज किया गया ?
बड़ी बहन FIR में लिखती है कि 2001 में मेरे साथ बापू आसारामजी ने दुष्कर्म किया लेकिन जरा सोचिए कि अगर किसी लड़की के साथ #दुष्कर्म होता है तो क्या वो अपनी सगी बहन को बाद में #आश्रम में #समर्पित करा सकती है..???

🚩लेकिन बड़ी बहन ने छोटी बहन को 2002 में संत आसारामजी बापू आश्रम में सपर्पित करवाया था। उसके बाद छोटी बहन 2005 और बड़ी बहन 2007 तक आश्रम में रही । दोनों #बहनें 2007 में आश्रम छोड़कर चली जाती हैं 2010 में उनकी शादी हो जाती है और जनवरी  2013 तक वो बापू आसारामजी और नारायण साईं के #कार्य्रकम में आती रहती हैं, सत्संग सुनती हैं, #कीर्तन करती हैं।

https://youtu.be/UHIj725-omY

🚩लेकिन अचानक क्या होता है कि अक्टूबर 2013 में #बलात्कार का आरोप लगाती हैं और दिसम्बर 2014 में लड़की केस वापिस लेना चाहती है लेकिन सरकार द्वारा विरोध किया जाता है ।

https://youtu.be/sJVSMiz7Njc

🚩यहाँ तक कि केस 12 साल पुराना होते हुए भी, कोई सबूत न होते हुये भी, बापू आसारामजी की #वृद्धावस्था को देखते हुए भी, 81 वर्ष की उम्र में चलना-फिरना मुश्किल होते हुए भी, जमानत तक नही दी जा रही है ।

🚩लगातार #मीडिया द्वारा बापू आसारामजी की छवि को #धूमिल करने का प्रयास करना, सरकार द्वारा जमानत तक का विरोध करना और #न्यायालय का जमानत देने से इंकार करना इससे साफ साबित होता है कि यह मामला भी उपजाऊ और फर्जी है ।

🚩आज सुप्रसिद्ध हस्तियाँ और संतों को फंसाने में #महिला कानून का #अंधाधुन दुरूपयोग किया जा रहा है

🚩आपको बता दें कि दिल्ली में बीते छह महीनों में 45 फीसदी ऐसे मामले अदालत में आएं जिनमें #महिलाएँ हकीकत में पीड़िता नहीं थी,बल्कि अपनी माँगें पूरी न होने पर बलात्कार का केस दर्ज करा रही थी ।

🚩छह जिला #अदालतों के रिकॉर्ड से ये बात सामने आई है कि बलात्कार के 70 फीसदी मामले अदालतों में साबित ही नहीं हो पाते हैं ।

🚩बलात्कार कानून की आड़ में महिलाएं आम नागरिक से लेकर सुप्रसिद्ध हस्तियों, संत-महापुरुषों को भी #ब्लैकमेल कर झूठे बलात्कार आरोप लगाकर जेल में डलवा रही हैं । कानून का दुरुपयोग करने पर वास्तविकता में जो महिला पीड़ित होती है उसको न्याय भी नही मिला पाता है ।

🚩बलात्कार निरोधक #कानूनों की खामियों को दूर करना होगा। तभी समाज के साथ न्याय हो पायेगा अन्यथा एक के बाद एक निर्दोष सजा भुगतने के लिए मजबूर होते रहेंगे ।

ब्रह्मज्ञानी की गति ब्रह्मज्ञानी जाने

डॉ प्रेम जी :-

एक बार भगवान् सूर्य नारायण की कीर्ति और यशोगान सुनकर कुछ उल्लू इर्ष्या द्वेष से जलने लगे । अखिल भारतीय ही नहीं अखिल विश्व उल्लू परिषद् ने फैसला बहाल कर दिया कि सूर्य को हम तेजस्वी नहीं मानते । उसमें प्रकाश नहीं है । क्योंकि हमको उनका प्रकाश दिखता नहीं है । ये फैसला सुनकर उनके मंडल के समर्थक एक पत्रकार ने सूर्य भगवान् से पूछा कि आप किस श्रेणी के हो? अखिल विश्व उल्लू परिषद् आपको तेजस्वी नहीं मानती । सूर्य भगवान् समझ गए कि पूछनेवाला किस श्रेणी का है। जब वह उल्लू की श्रेणी का है तो उसको सत्य से तो कुछ लेनादेना नहीं है । इसलिए सूर्य भगवान् ने उत्तर दिया “अन्धकार की श्रेणी का” ये उत्तर सुनकर वह पत्रकार खुश हो गया और उसे एक अंतर्राष्ट्रीय समाचार के रूप में मीडिया के द्वारा दूसरे उल्लूओं की सहायता से प्रचार करने में लग गया। जितने भी लोग उसी उल्लू श्रेणी के थे वे सब सूर्य भगवान् की बात को सच्ची मानकर उनकी आलोचना करने लगे और अपने अपने comments देने लगे । पर बेचारे ये नहीं समझ पाए कि वे इन कमेंट्स के द्वारा अपने उल्लू होने का परिचय दे रहे है ।

अगर मान ले कि कोई संत गधे की श्रेणी के है तो ये भी मानना पड़ेगा कि ऐसे संत से आशीर्वाद और प्रेरणा पाने के लिए उनके दर्शन और सत्संग सुनने के लिए जानेवाले भारत के 6 प्रधान मंत्री (गुलझारी लाल नंदा, चंद्रशेखर, पी. व्ही. नरसिन्हाराव्, एच.डी. देवेगोवड़ा, अटल बिहारी वाजपेयी, और नरेंद्र मोदी), विभिन्न राज्यों के बीसों मुख्य मंत्री, विभिन्न पक्षों के सैकड़ो MLA और सैकड़ो MP ये सब गधे से निम्न श्रेणी के सिद्ध हो जायेंगे क्योंकि बुद्धिमान मनुष्य अपने से श्रेष्ठ महानुभाव के पास ही आशीर्वाद और प्रेरणा लेने जाते है । कोई भी गधे की श्रेणी का व्यक्ति किसी राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए इतने लोगों को आशीर्वाद और प्रेरणा नहीं दे सकता । जब ये राष्ट्र के वरिष्ठ नेता अगर गधे से निम्न श्रेणी के सिद्ध हुए तो उनको चुनाव के द्वारा उन पदों पर बिठानेवाले और उनके द्वारा शासित होनेवाले राष्ट्र के सभी लोग गधे से निम्न श्रेणी के लोगों से भी निम्न श्रेणी के सिद्ध होगे।
पर इतना विचार करने की क्षमता उन उल्लूओं के पास नहीं है ।अगर वे उल्लू अपने आपको बुद्धिमान सिद्ध करना चाहे तो उनको शासित करनेवालों को महाबुद्धिमान मानना पड़ेगा और उन महाबुद्धिमानों को प्रेरणा और आशीर्वाद देनेवाले संत को संत शिरोमणि मानना ही पड़ेगा ।

जो मनुष्य की श्रेणी के है वे तो अपने अनुभव से जानते है कि सूर्य भगवान् की कृपा से ही पृथिवी के सब जीव, वनस्पति, पशु, पक्षी, मनुष्य आदि  पोषण प्राप्त करते है पर उल्लूओं के पास तो वह दृष्टि ही नहीं है कि वे सूर्य भगवान् को पहचान सके । उल्लू के पास तो दृष्टि नहीं है इसलिए वे सूर्य भगवान् को नहीं पहचानते पर इन उल्लू पत्रकारों के पास तो दृष्टि है पर चांदी के चंद टुकड़ों के लिए अपने धर्मसे, अपनी संस्कृति से और अपने राष्ट्र से गद्दारी करनेवाले उल्लू सूर्य भगवान् के सामर्थ्य और प्रभाव को देखने का बाद भी विधर्मी राष्ट्रविरोधी ताकतों के इशारों पर सूर्य भगवान् को पूछते हैं कि वे किस श्रेणी के है । उनको सूर्य भगवान् और क्या उत्तर से सकते है और उस उत्तर से वे खुश हो गए ये भी उनके उल्लूपने का प्रमाण है ।

ऐसे ही जो मनुष्य है वे जानते है कि पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया और विधर्मी ताकतों से सनातन संस्कृत की रक्षा की है ।वे केवल संत नहीं है, वे धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेनेवाले भगवान् के नित्य अवतार है ।उनको किसी श्रेणी में कैसे बाँध सकोगे?

आज तक जितने भी अवतार और धर्म की रक्षा करनेवाले सच्चे संत हुए है उनको तत्कालीन धर्म के ठेकेदारों ने महापुरुष या संत माना नहीं था और उनको सताने में कोई कमी नहीं रखी थी फिर भी वे महापुरुष उनको क्षमा करके अपना दैवी कार्य करते रहे ।

भगवान् श्री कृष्ण को यज्ञ करनेवाले धर्म के ठेकेदारों ने भोजन नहीं दिया (श्री मद भागवत दशम स्कंध अध्याय २३), इस से समझ लेना कि कृष्ण भगवान को धर्म के ठेकेदारों ने किस श्रेणी में गिना होगा । महाभारत के युद्ध के बाद उत्तंक तपस्वी तो भगवान् कृष्ण को शाप देने को तैयार हो गए थे, तो उन्होंने भगवान् को किस श्रेणी में गिना होगा इसका अनुमान कर लेना । संत ज्ञानेश्वर और उनको भाइयों को तथा बहन को धर्म के ठेकेदारों ने ब्राह्मण जाती से बाहर कर दिया था और अनेक प्रकार से कष्ट दिए थे ।संत कबीर, संत दादू दीन दयाल, संत रहिदास आदि अनेक सच्चे संतो को धर्म के ठेकेदारों ने महापुरुष मानने से इनकार कर दिया था और उनको सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी । आदि जगतगुरु शंकराचार्य की माताजी की अंत्येष्टि में तत्कालीन धर्म के ठेकेदारों ने सहयोग नहीं दिया और उनको माता के शरीर के टुकड़े कर के अग्नि संस्कार करना पडा था । स्वामी विवेकानंद ने कितने कष्ट सहकर अमेरिका में सन 1893 में Parliament of World religions में हिन्दू धर्म का नाम रोशन किया फिर भी तत्कालीन धर्म के ठेकेदारों ने विधर्मी हिन्दू विरोधी ताकतों से मिलकर अमेरिका में स्वामी विवेकानंद भारत के संत नहीं है, चरित्रहीन सन्यासी है ऐसा कुप्रचार किया था. तो सन 1993 में Parliament of World religions में हिन्दूधर्म का नाम रोशन करनेवाले संत श्री आशारामजी बापू हिन्दू धर्म के संत नहीं है ऐसा कुप्रचार वर्त्तमानकालीन धर्म के ठेकेदारों ने विधर्मी हिन्दू विरोधी ताकतों से मिलकर भारत में और मीडिया के द्वारा विश्व में किया हो तो इसमें आश्चर्य क्या है? 

उनके भ्रष्ट और कृतघ्न होने का प्रमाण ये है कि हिन्दू धर्म के सभी 13 अखाड़ा के द्वारा सर्वानुमत से संत श्री आशारामजी बापू को धर्म रक्षा मंच के प्रमुख के रूप में मुंबई में आयोजित एक विशाल कार्यक्रम में नियुक्त किया गया था । जब धर्म रक्षा के कार्य को करने के कारण उनको षड्यंत्र में फंसाकर बिना किसी अपराध के जेल में बंद कर दिया गया तब वही अखाड़ा परिषद् कहती है कि वे उनको संत नहीं मानते । ऐसे जयचंदो और अमीचंदो के कारण ही भारत पर विदेशी आक्रान्ता शासन कर सके थे और आज भी विधर्मी ताकतें हिन्दू संतों को सताने में और हिन्दू धर्म को बदनाम करने में सफल हो रही है । हिन्दू विरोधी ताकतों से हाथ मिलानेवाले तथाकथित धर्म के ठेकेदारों से समाज को सावधान रहना पड़ेगा अन्यथा भारत फिर से गुलाम बन सकता है ।

सच्चे संतों का धर्म के ठेकेदार विरोध करते हैं इसका कारण यही है कि धर्म के ठेकेदारों की दुकानदारी समाज को सुलाने से चलती है और जगे हुए महापुरुष समाज को जगाते है ।तब वे अज्ञान की नींद में सो रहे, खर्राटे लेते हुए धर्म के ठेकेदार कौन जगा हुआ है इस बात का फैसला देने लगते है ।

क्या सोया हुआ मनुष्य ये निर्णय दे सकता है कि कौन जगा हुआ है? फिर भी उनके विरोधों को सहते हुए महापुरुष समाज को जगाने का दैवी कार्य करते ही रहते है ।जब अनादी काल से धर्म के ठेकेदार सच्चे संत महापुरुषों की निंदा करके और उनको सताकर अपने उल्लूपने का परिचय देते आये है तो इस समय किसी सच्चे संत को अखिल विश्व उल्लू परिषद् ने फर्जी बाबा घोषित कर दिया तो उसमें क्या आश्चर्य है । उन्होंने अपने उल्लूपन का ही परिचय दिया है ।जो उनकी जमात के होगे वे उनका समर्थन करेंगे और जो मनुष्य की दृष्टि वाले होगे वे तो सूर्य नारायण की महिमा का स्वयं अनुभव करेंगे, या उनके दैवी कार्यों को देखकर भी समझ जायेंगे कि उल्लू कौन है और सूर्य भगवान् कौन हैं।

         ब्रह्मज्ञानी ब्रह्म स्वरूप होते है, उनकी कोई श्रेणी नहीं होती ।जो तथाकथित धर्म के ठेकेदारों के प्रमाण से संत घोषित होते है वे सच्चे संत नहीं होते
सच्चे संत किसी मत, पंथ, या सम्प्रदाय के गुलाम नहीं होते ।

संत कबीर, गुरु नानक, संत ज्ञानेश्वर, राम कृष्ण परमहंस आदि महापुरुष अपने अनुभव से ब्रह्म स्वरूप थे उनको किसी धर्म के ठेकेदारों के प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती । वे एक साथ अपने ब्रह्म स्वरूप में स्वयं को ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में भी अनुभव करते है और मच्छर, कीड़े, गधे आदि रूप भी मेरे ही है ऐसा जानते है ।
उनको आप किस श्रेणी के हो? ये पूछना ही पूछनेवाले की मूर्खता का प्रदर्शन है ।
गुरु नानक ने कहा है
ब्रह्मज्ञानी की गति ब्रह्मज्ञानी जाने ।
आजकल के पत्रकार क्या जाने कि ब्रह्मज्ञानी क्या होते है? 
ऐसे मूर्खों को टालने के लिए ब्रह्मज्ञानी ऐसा जवाब दे दे इसमें कोई आश्चर्य नहीं है ।
पूछनेवाला अगर शास्त्रज्ञ होता तो किसी ब्रह्मज्ञानी संत से ऐसा प्रश्न पूछता ही नहीं कि आप किस श्रेणी में आते हो?

भारतीय मनोविज्ञान कितना यथार्थ !

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक डॉ. सिग्मंड फ्रायड स्वयं कई शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रस्त था। 'कोकीन' नाम की नशीली दवा का वो व...