गरुड़ पुराण के छत्तीस नरकों का विवरण


गरुड़ पुराणः ये हैं 36 नर्क, जानिए किसमें कैसे दी जाती है सजाl
हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी अनेक कथाओं में स्वर्ग और नर्क के बारे में बताया गया है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग वह स्थान होता है जहां देवता रहते हैं और अच्छे कर्म करने वाले इंसान की आत्मा को भी वहां स्थान मिलता है, इसके विपरीत बुरे काम करने वाले लोगों को नर्क भेजा जाता है, जहां उन्हें सजा के तौर पर गर्म तेल में तला जाता है और अंगारों पर सुलाया जाता है।

हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों ने 36 तरह के मुख्य नर्कों का वर्णन किया गया है। अलग-अलग कर्मों के लिए इन नर्कों में सजा का प्रावधान भी माना गया है। गरूड़ पुराण, अग्रिपुराण, कठोपनिषद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। आज हम आपको उन नर्कों के बारे में संक्षिप्त रूप से बता रहे हैं-
1. महावीचि
2. कुंभीपाक
3. रौरव
4. मंजूष
5. अप्रतिष्ठ
6. विलेपक
7. महाप्रभ
8. जयंती
9. शाल्मलि
10. महारौरव
11. तामिस्र
12. महातामिस्र
13. असिपत्रवन
14. करम्भ बालुका
15. काकोल
16. कुड्मल
17. महाभीम
18. महावट
19. तिलपाक
20. तैलपाक
21. वज्रकपाट
22. निरुच्छवास
23. अंगारोपच्य
24. महापायी
25. महाज्वाल
26. क्रकच
27. गुड़पाक
28. क्षुरधार
29. अम्बरीष
30. वज्रकुठार
31. परिताप
32. काल सूत्र
33. कश्मल
34. उग्रगंध
35. दुर्धर
36. वज्रमहापीड
1. महावीचि- यह नर्क पूरी तरह रक्त यानी खून से भरा है और इसमें लोहे के बड़े-बड़े कांटे हैं। जो लोग गाय की हत्या करते हैं, उन्हें इस नर्क में यातना भुगतनी पड़ती है।
2. कुंभीपाक- इस नर्क की जमीन गरम बालू और अंगारों से भरी है। जो लोग किसी की भूमि हड़पते हैं या ब्राह्मण की हत्या करते हैं। उन्हें इस नर्क में आना पड़ता है।
3. रौरव- यहां लोहे के जलते हुए तीर होते हैं। जो लोग झूठी गवाही देते हैं उन्हें इन तीरों से बींधा जाता है।
4. मंजूष- यह जलते हुए लोहे जैसी धरती वाला नर्क है। यहां उनको सजा मिलती है, जो दूसरों को निरपराध बंदी बनाते हैं या कैद में रखते हैं।
5. अप्रतिष्ठ- यह पीब, मूत्र और उल्टी से भरा नर्क है। यहां वे लोग यातना पाते हैं, जो ब्राह्मणों को पीड़ा देते हैं या सताते हैं।
6. विलेपक- यह लाख की आग से जलने वाला नर्क है। यहां उन ब्राह्मणों को जलाया जाता है, जो शराब पीते हैं।
7. महाप्रभ- इस नर्क में एक बहुत बड़ा लोहे का नुकीला तीर है। जो लोग पति-पत्नी में फूट डालते हैं, पति-पत्नी के रिश्ते तुड़वाते हैं वे यहां इस तीर में पिरोए जाते हैं।
8. जयंती- यहां जीवात्माओं को लोहे की बड़ी चट्टान के नीचे दबाकर सजा दी जाती है। जो लोग पराई औरतों के साथ संभोग करते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।
9. शाल्मलि- यह जलते हुए कांटों से भरा नर्क है। जो औरत कई पुरुषों से संभोग करती है व जो व्यक्ति हमेशा झूठ व कड़वा बोलता है, दूसरों के धन और स्त्री पर नजर डालता है। पुत्रवधू, पुत्री, बहन आदि से शारीरिक संबंध बनाता है व वृद्ध की हत्या करता है, ऐसे लोगों को यहां लाया जाता है।
10. महारौरव- इस नर्क में चारों तरफ आग ही आग होती है। जैसे किसी भट्टी में होती है। जो लोग दूसरों के घर, खेत, खलिहान या गोदाम में आग लगाते हैं, उन्हें यहां जलाया जाता है।
11. तामिस्र- इस नर्क में लोहे की पट्टियों और मुग्दरों से पिटाई की जाती है। यहां चोरों को यातना मिलती है।
12. महातामिस्र- इस नर्क में जौंके भरी हुई हैं, जो इंसान का रक्त चूसती हैं। माता, पिता और मित्र की हत्या करने वाले को इस नर्क में जाना पड़ता है।
13. असिपत्रवन- यह नर्क एक जंगल की तरह है, जिसके पेड़ों पर पत्तों की जगह तीखी तलवारें और खड्ग हैं। मित्रों से दगा करने वाला इंसान इस नर्क में गिराया जाता है।
14. करम्भ बालुका- यह नर्क एक कुएं की तरह है, जिसमें गर्म बालू रेत और अंगारे भरे हुए हैं। जो लोग दूसरे जीवों को जलाते हैं, वे इस कुएं में गिराए जाते हैं।
15. काकोल- यह पीब और कीड़ों से भरा नर्क है। जो लोग छुप-छुप कर अकेले ही मिठाई खाते हैं, दूसरों को नहीं देते, वे इस नर्क में लाए जाते हैं।
16. कुड्मल- यह मूत्र, पीब और विष्ठा (उल्टी) से भरा है। जो लोग दैनिक जीवन में पंचयज्ञों ( ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, मनुष्य यज्ञ) का अनुष्ठान नहीं करते वे इस नर्क में आते हैं।
17. महाभीम- यह नर्क बदबूदार मांस और रक्त से भरा है। जो लोग ऐसी चीजें खाते हैं, जिनका शास्त्रों ने निषेध बताया है, वो लोग इस नर्क में गिरते हैं।
18. महावट- इस नर्क में मुर्दे और कीड़े भरे हैं, जो लोग अपनी लड़कियों को बेचते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।
19. तिलपाक- यहां दूसरों को सताने, पीड़ा देने वाले लोगों को तिल की तरह पेरा जाता है। जैसे तिल का तेल निकाला जाता है, ठीक उसी तरह।
20. तैलपाक- इस नर्क में खौलता हुआ तेल भरा है। जो लोग मित्रों या शरणागतों की हत्या करते हैं, वे यहां इस तेल में तले जाते हैं।
21. वज्रकपाट- यहां वज्रों की पूरी श्रंखला बनी है। जो लोग दूध बेचने का व्यवसाय करते हैं, वे यहां प्रताड़ना पाते हैं।
22. निरुच्छवास- इस नर्क में अंधेरा है, यहां वायु नहीं होती। जो लोग दिए जा रहे दान में विघ्न डालते हैं वे यहां फेंके जाते हैं।
23. अंगारोपच्य- यह नर्क अंगारों से भरा है। जो लोग दान देने का वादा करके भी दान देने से मुकर जाते हैं। वे यहां जलाए जाते हैं।
24. महापायी- यह नर्क हर तरह की गंदगी से भरा है। हमेशा असत्य बोलने वाले यहां औंधे मुंह गिराए जाते हैं।
25. महाज्वाल- इस नर्क में हर तरफ आग है। जो लोग हमेशा ही पाप में लगे रहते हैं वे इसमें जलाए जाते हैं।
26. गुड़पाक- यहां चारों ओर गरम गुड़ के कुंड हैं। जो लोग समाज में वर्ण संकरता फैलाते हैं, वे इस गुड़ में पकाए जाते हैं।
27. क्रकच- इस नर्क में तीखे आरे लगे हैं। जो लोग ऐसी महिलाओं से संभोग करते हैं, जिसके लिए शास्त्रों ने निषेध किया है, वे लोग इन्हीं आरों से चीरे जाते हैं।
28. क्षुरधार- यह नर्क तीखे उस्तरों से भरा है। ब्राह्मणों की भूमि हड़पने वाले यहां काटे जाते हैं।
29. अम्बरीष- यहां प्रलय अग्रि के समान आग जलती है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, वे इस आग में जलाए जाते हैं।
30. वज्रकुठार- यह नर्क वज्रों से भरा है। जो लोग पेड़ काटते हैं वे यहां लंबे समय तक वज्रों से पीटे जाते हैं।
31. परिताप- यह नर्क भी आग से जल रहा है। जो लोग दूसरों को जहर देते हैं या मधु (शहद) की चोरी करते हैं, वे यहां जलाए जाते हैं।
32. काल सूत्र- यह वज्र के समान सूत से बना है। जो लोग दूसरों की खेती नष्ट करते हैं। वे यहां सजा पाते हैं।
33. कश्मल- यह नर्क नाक और मुंह की गंदगी से भरा होता है। जो लोग मांसाहार में ज्यादा रुचि रखते हैं, वे यहां गिराए जाते हैं।
34. उग्रगंध- यह लार, मूत्र, विष्ठा और अन्य गंदगियों से भरा नर्क है। जो लोग पितरों को पिंडदान नहीं करते, वे यहां लाए जाते हैं।
35. दुर्धर- यह नर्क जौक और बिच्छुओं से भरा है। सूदखोर और ब्याज का धंधा करने वाले इस नर्क में भेजे जाते हैं।
36. वज्रमहापीड- यहां लोहे के भारी वज्र से मारा जाता है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, किसी प्राणी की हत्या कर उसे खाते हैं, दूसरों के आसन, शय्या और वस्त्र चुराते हैं, जो दूसरों के फल चुराते हैं, धर्म को नहीं मानते ऐसे सारे लोग यहां लाए जाते हैं।

➡ : उन कामों के बारे में जानिए, जिन्हें करने से नर्क जाना पड़ता है।
1. जो कुएं, तालाब, प्याऊ और मार्ग आदि को हानि पहुंचाते हैं, ऐसे दुष्ट नरक में जाते हैं।
2. आत्महत्या, स्त्री हत्या, गर्भ हत्या, ब्रह्म हत्या, गौ हत्या करने वाला, झूठी गवाही देने वाला, कन्या को बेचने वाला, झूठ बोलने वाले लोग नर्क में जाते हैं।
3. जो लोग भगवान शिव और विष्णु का चिंतन नहीं करते, उन्हें नर्क में जाना पड़ता है।
4. ऋषियों, सतियों और वेदों की निंदा करने वाले लोग सदैव नर्क में ही जाते हैं।
5. भूख-प्यास से थक कर जो भिखारी किसी के घर जाता हो और उसे वहां से अपमानित होकर लौटना पड़े, तो ऐसे याचक (मांगने वाला) का अपमान करने वाले नरक में जाते हैं।
6. जो शराब, मांस, गीत, जुआं आदि व्यसनों में ही दिन-रात लगे रहते हैं, ऐसे लोगों को नरक ही प्राप्त होता है।
7. जो अपनी पत्नी, बच्चों, नौकरों और मेहमानों को खिलाए बिना ही खाते हैं और पितरों तथा देवताओं की पूजा छोड़ देते हैं, ऐसे लोग नरक में जाते हैं।
8. दूसरों का धन हड़पने वाले, दूसरों के गुणों में दोष देखने वाले तथा दूसरों से ईष्र्या करने वाले नरक में जाते हैं।
9. जो अनाथ, गरीब, रोगी, बूढ़े और दयनीय लोगों पर दया नहीं करता, वह नरक में जाता है।
10. ब्राह्मण होकर शराब व मांस का सेवन करने वाला, ब्राह्मण की जीविका नष्ट करने वाला और दूसरों की संपत्ति का हरण करने वाला, ये सभी नर्क को ही प्राप्त होते हैं।
अभिषेक तिवारी
8989628972

➡ :इन नरकों से बचने का एक मात्र हरि नाम ही सहारा है. हरि नाम जितना ले सकते हैं लें प्रेम से बोलिए ''जय श्री हरी'' ''जय श्री कृष्ण'' 🌹👏 🌞🌞🌞.

संतों का संग अमोघ होता है


जब-जब हम ईश्वर एवं गुरु की ओर खिंचते हैं, आकर्षित होते हैं तब-तब मानों कोई-न-कोई सत्कर्म हमारा साथ देते हैं और जब-जब हम दुष्कर्मों की ओर धकेले जाते हैं तब-तब मानों हमारे इस जन्म अथवा पुनर्जन्म के दूषित संस्कार अपना प्रभाव छोड़ते हैं। अब देखना यह है कि हम किसकी ओर जाते हैं ? हम पाप की ओर झुकते हैं कि पुण्य की ओर ? संत की ओर झुकते हैं कि असंत की ओर ? जब तक आत्मज्ञान नहीं होता तब तक संग का रंग लगता रहता है। संग के प्रभाव से साधु असाधु बन जाता है एवं असाधु भी साधु हो जाता है।

किया हुआ भगवान का स्मरण कभी व्यर्थ नहीं जाता। किया हुआ ध्यान-भजन, किये हुए पुण्यकर्म हमें सत्कर्मों की ओर ले जाते हैं। इसी प्रकार किये हुए पापकर्म, हमारे अंदर के अनंत जन्मों के पाप-संस्कार हमें इस जन्म में दुष्कृत्य की ओर ले जाते हैं। फिर भी वे ईश्वर हमें कभी-न-कभी जगा देते हैं जिसके फलस्वरूप पाप के बाद हमें पश्चाताप होता है और वैराग्य आता है। उसी समय यदि हमें कोई सच्चे संत मिल जायें, किन्हीं सदगुरु का सान्निध्य मिल जाय तो फिर हो जाये बेड़ा पार।

स्वार्थ, अभिमान एवं वासना के कारण हमसे पाप तो खूब हो जाते हैं लेकिन संतों का संग हमें पकड़-पकड़कर, पाप में से खींचकर भगवान के ध्यान में ले जाता है। हजार-हजार असंतों का संग होता है, हजार-हजार झूठ बोलते हैं फिर भी एक बार का सत्संग दूसरी बार और दूसरी बार का सत्संग तीसरी बार सत्संग करा देता है। ऐसा करते-करते संतों का संग करने वाले एक दिन स्वयं संत के ईश्वरीय अनुभव को अपना अनुभव बना लेने में सफल हो जाते हैं।

…तो मानना पड़ेगा कि किया हुआ संग चाहे पुण्य का संग हो या पाप का, असंत का संग हो या संत का, उसका प्रभाव जरूर पड़ता है। फर्क केवल इतना होता है कि संत का संग गहरा असर करता है, अमोघ होता है जबकि असंत का संग छिछला असर करता है। पापियों के संग का रंग जल्दी लग जाता है लेकिन उसका असर गहरा नहीं होता है, जबकि संतों के संग का रंग जल्दी नहीं लगता और जब लगता है तो उसका असर गहरा होता है। पापी व्यक्ति इन्द्रियों में जीता है, भोगों में जीता है, उसके जीवन में कोई गहराई नहीं होती इसलिए उसके संग का रंग गहरा नहीं लगता। संत जीते हैं सूक्ष्म से सूक्ष्म परमात्मतत्त्व में और जो चीज जितनी सूक्ष्म होती है उसका असर उतना ही गहरा होता है। जैसे, पानी यदि जमीन पर गिरता है तो जमीन के अंदर चला जाता है क्योंकि जमीन की अपेक्षा वह सूक्ष्म होता है। वही पानी जमीन में गर्मी पाकर वाष्पीभूत हो जाये, फिर चाहे जमीन के ऊपर आर.सी.सी. बिछा दो तो भी पानी उसे लाँघकर उड़ जायेगा। ऐसे ही सत्संग व्यर्थ नहीं जाता क्योंकि संत अत्यंत सूक्ष्म परमात्मतत्त्व में जगे हुए होते हैं। हमारे घर की पहुँच हमारे गाँव तक होती है, गाँव की पहुँच राज्य तक होती है, राज्य की पहुँच राष्ट्र तक, राष्ट्र की पहुँच दूसरे राष्ट्र तक होती है किन्तु संतों की पहुँच… इस पृथ्वी को तो छोड़ो, ऐसी कई पृथ्वियों, कई सूर्य एवं उसके भी आगे अत्यन्त सूक्ष्म जो परमात्मा है, जो इन्द्रियातीत, लोकातीत, कालातीत है, जहाँ वाणी जा नहीं सकती, जहाँ से मन लौट आता है उस परमात्मपद, अविनाशी आत्म तक होती है। यदि हमें उनके संग का रंग लग जाये तो फिर हम किसी भी लोक-लोकान्तर में, देश-देशान्तर में हों या इस मृत्युलोक में हों, सत्संग के संस्कार हमें उन्नति की राह पर ले ही जायेंगे।

अपनी करनी से ही हम संतों के नजदीक या उनसे दूर चले जाते हैं। हमारे कुछ निष्कामता के, सेवाभाव के कर्म होते हैं तो हम भगवान और संतों के करीब जाते हैं। संत-महापुरुष हमें बाहर से कुछ न देते हुए दिखें किन्तु उनके सान्निध्य से हृदय में जो सुख मिलता है, जो शांति मिलती है, जो आनंद मिलता है, जो निर्भयता आती है वह सुख, वह शांति, वह आनंद विषयभोगों में कहाँ ?

एक युवक एक महान संत के पास जाता था। कुछ समय बाद उसकी शादी हो गई, बच्चे हुए। फिर वह बहुत सारे पाप करने लगा। एक दिन वह रोता हुआ अपने गुरु के पास आया और बोलाः “बाबाजी ! मेरे पास सब कुछ है-पुत्र है, पुत्री है, पत्नी है, धन है लेकिन मैं अशांत हो गया हूँ। शादी के पहले जब आता था तो जो आनंद व मस्ती रहती थी, वह अब नहीं है। लोगों की नजरों में तो लक्षाधिपति हो गया लेकिन बहुत बेचैनी रहती है बाबाजी !”

बाबाजीः “बेटा ! कुछ सत्कर्म करो। प्राप्त संपत्ति का उपयोग भोग में नहीं, अपितु सेवा और दान-पुण्य में करो। जीवन में सत्कृत्य कर करने से बाह्य वस्तुएँ पास में न रहने पर भी आनंद, चैन और सुख मिलता है और दुष्कृत्य करने से बाह्य ऐशो-आराम होने पर भी सुख-शांति नहीं मिलती है।”

हम सुखी हैं कि दुःखी हैं, पुण्य की ओर बढ़ रहे हैं कि पाप की ओर बढ़ रहे हैं-यह देखना हो और लंबे चौड़े नियमों एवं धर्मशास्त्रों को न समझ सकें तो इतना तो जरूर समझ सकेंगे कि हमारे हृदय में खुशी, आनंद और आत्मविश्वास बढ़ रहा है कि घट रहा है। पापकर्म हमारा मनोबल तोड़ता है। पापकर्म हमारी मन की शांति खा जायेगा, हमें वैराग्य से हटाकर भोग में रुचि करायेगा जबकि पुण्यकर्म हमारे मन की शांति बढ़ाता जायेगा, हमारी रुचि परमात्मा की ओर बढ़ाता जायेगा।

जो लोग स्नान-दान, पुण्यादि करते हैं, सत्कर्म करते हैं उनको संतों की संगति मिलती है। धीरे-धीरे संतों का संग होगा, पाप कटते जायेंगे और सत्संग में रूचि होने लगेगी। सत्संग करते-करते भीतर के केन्द्र खुलने लगेंगे, ध्यान लगने लगेगा।

हमें पता ही नहीं है कि एक बार के सत्संग से कितने पाप-ताप क्षीण होते हैं, अंतःकरण कितना शुद्ध हो जाता है और कितना ऊँचा उठ जाता है मनुष्य ! यह बाहर की आँखों से नहीं दिखता। जब ऊँचाई पर पहुँच जाते हैं तब पता चलता है कि कितना लाभ हुआ ! हजारों जन्मों के माता-पिता, पति-पत्नी आदि जो नहीं दे सके, वह हमको संत सान्निध्य से हँसते खेलते मिल जाता है। कोई-कोई ऐसे पुण्यात्मा होते हैं जिनको पूर्वजन्म के पुण्यों से इस जन्म में जल्दी गुरु मिल जाते हैं। फिर ब्रह्मज्ञानी संत का सान्निध्य भी मिल जाता है। ऐसा व्यक्ति तो थोड़े से ही वचनों से रँग जाता है। जो नया है वह धीरे-धीरे आगे बढता है। जिसके जितने पुण्य होते हैं, उस क्रम से वह प्रगति करता है।

जैसे वृक्ष तो बहुत हैं लेकिन चंदन के वृक्ष कहीं-कहीं पर ही होते हैहं। ऐसे ही मनुष्य तो बहुत हैं लेकिन ज्ञानी महापुरुष कहीं-कहीं पर ही होते हैं। ऐसे ज्ञानवानों के संग से हमारा चित्त शांत और पवित्र होता है एवं धीरे-धीरे उस चित्त में आत्मज्ञान का प्रवेश होता है और आत्मज्ञान पाकर मनुष्य मुक्त हो जाता है। जिस तरह अग्नि में लोहा डालने से लोहा अग्निरूप हो जाता है, उसी तरह संत-समागम से मनुष्य संतों की अनुभूति को अपनी अनुभूति बना सकता है। ईश्वर की राह पर चलते हुए संतों को जो अनुभव हुए हैं, जैसा चिन्तन करके उनको लाभ हुआ है ऐसे ही उनके अनुभवयुक्त वचनों को हम अपने चिंतन का विषय बनाकर इस राह की यात्रा करके अपना कल्याण कर सकते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 1999, पृष्ठ संख्या 5-7 अंक 82

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त्रिपुरारी पूर्णिमा

*त्रिपुरारी पूर्णिमा* 🌷
🙏🏻 *धर्म ग्रंथों के अनुसार,इसी दिन भगवान शिव ने असुरों के तीन नगर(त्रिपुर)का नाश किया था। इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। चूंकि त्रिपुरारी पूर्णिमा भगवान शिव से संबंधित है इसलिए इस बार ये शुभ योग आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय किए जाएं तो हर परेशानी दूर हो सकती है।*
➡ *आपकी परेशानियां दूर कर सकते हैं ये उपाय*
1⃣ *यदि विवाह में अड़चन आ रही है तो पूर्णिमा को शिवलिंग पर केसर मिला दूध चढ़ाएं । जल्दी ही विवाह के योग बन सकते हैं ।*
2⃣ *मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं । इस दौरान भगवान शिव का ध्यान करते रहें । यह धन प्राप्ति का सरल उपाय है ।*
3⃣ *पूर्णिमा को 21 बिल्व पत्रों पर चंदन से ॐ नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं । इससे आपकी इच्छाएं पूरी हो सकती है ।*
4⃣ *पूर्णिमा को नंदी (बैल) को हरा चारा खिलाएं । इससे जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और परेशानियों का अंत होगा ।*
5⃣ *गरीबों को भोजन करवाएं ।इससे आपके घर में कभी अन्न की कमी नहीं होगी तथा पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी ।*
6⃣ *पानी में काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें व ॐ नम: शिवाय का जप करें । इससे मन को शांति मिलेगी ।*
7⃣ *घर में पारद शिवलिंग की स्थापना करें व रोज उसकी पूजा करें । इससे आपकी आमदनी बढ़ाने के योग बनते हैं ।*
8⃣ *पूर्णिमा को आटे से 11 शिवलिंग बनाएं व 11 बार इनका जलाभिषेक करें । इस उपाय से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं ।*
9⃣ *शिवलिंग का 101 बार जलाभिषेक करें । साथ ही महा मृत्युंजय *ॐ हौं जूँ सः । ॐ भूर्भुवः स्वः । ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम् उर्व्वारुकमिव बन्धानान्मृत्यो मृक्षीय मामृतात् । ॐ स्वः भुवः भूः ॐ । सः जूँ हौं ॐ ।* *मंत्र का जप करते रहें । इससे बीमारी ठीक होने में लाभ मिलता है ।*
🔟 *पूर्णिमा को भगवान शिव को तिल व जौ चढ़ाएं । तिल चढ़ाने से पापों का नाश व जौ चढ़ाने से सुख में वृद्धि होती है ।*
             🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🌷 *भगवान्‌ श्रीकृष्ण* 🌷
👉🏻 *महाभारत, शान्तिपर्व॰ ४७/९२*
*एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।*
*दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ॥*
👉🏻 *नारदपुराण , उत्तरार्ध, ६/३*
*एको हि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।*
*दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय ।। ६-३ ।।*
👉🏻 *स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्डः*
*एकोऽपि गोविन्दकृतः प्रणामः शताश्वमेधावभृथेन तुल्यः ।।*
*यज्ञस्य कर्त्ता पुनरेति जन्म हरेः प्रणामो न पुनर्भवाय ।।*
➡ *जिसका अर्थ है।*
*‘भगवान्‌ श्रीकृष्णको एक बार भी प्रणाम किया जाय तो वह दस अश्वमेध यज्ञों के अन्त में किये गये स्नान के समान फल देनेवाला होता है । इसके सिवाय प्रणाम में एक विशेषता है कि दस अश्वमेध करने वाले का तो पुनः संसार में जन्म होता है, पर श्रीकृष्को प्रणाम करनेवाला अर्थात्‌ उनकी शरणमें जानेवाला फिर संसार-बन्धनमें नहीं आता ।’*

2019 का लोकसभा का चुनाव: भारत और उसके हिन्दुओ के अस्तित्व की रक्षा का निर्णायक युद्ध है?

मैंने कुछ दिनों पहले, आज से करीब 160 वर्ष पूर्व, हेनरी क्नॉक्स द्वारा लिखा हुआ यह पढ़ा था,

"Something is wanting, and something must be done, or we shall be involved in all the horror of failure, and civil war without a prospect of its termination."
@Henry Knox

इसका हिंदी में अनुवाद कुछ इस तरह है कि,

"सिर्फ आज का ही समय हमारे पास है, अभी भी सम्भल जाओ, नही तो भयानक गलती करते हुए, गृहयुद्ध की तरफ चले जाओगे, जिसका रुकना असंभव हो जायेगा।"

19वीं शताब्दी के मध्य में, अमेरिका के गृहयुद्ध के शुरू होने से पहले, हेनरी क्नॉक्स ने अमेरिका के दक्षिणी राज्यों के दास स्वामियों और उनका समर्थन कर रहे राजनीतिज्ञों, न्यायाधीशों, व्यापारियों, बुद्धजीवियों और शासन तन्त्र में बैठे लोगो को जो, भविष्य की भयानकता का दर्शन कराने वाले, चेतावनी भरे वाक्य बोले थे, वो आज डेढ़ शताब्दी बाद, भारत के वर्तमान के राजनैतिक व सामाजिक परिदृश्य में सोलह आना ठीक बैठते है।

जैसे जैसे भारत, 2019 में एक बार फिर नई सरकार के चुनाव की तरफ बढ रहा है वैसे वैसे भारत, उसकी संवैधानिक आत्मा व उसके हिन्दुओ को तोड़ने व उसके मान को कुचले जाने के प्रयासों में तीव्रता आगयी है। यह सब जो कुछ हो रहा है वह कोई बाहर से आकर नही कर रहा गया बल्कि यह अंदर ही पाली पोसी गयी शक्तियाँ है, जो भारत व हिंदुओं के अस्तित्व के काल के रूप में, पोषित की गई है। यह जो हो रहा है वो अराजक जरूर है लेकिन यह सब भारतीय न्यायपालिका द्वारा वैध रूप से संरक्षित है।

आज जिस निर्लज्जता से न्यायालय के धीशों द्वारा, भारत के संविधान प्रदत्त अधिकारों की सीमाओं को नेपथ्य में ठकेलते हुये, भारत व हिन्दुओ की आत्मा पर कुठारघात किया जाने लगा है, वह न सिर्फ अविश्वनीय है बल्कि ऐसा कोई दूसरा उदाहरण विश्व भर में नही मिलता है। भारत की जनता के प्रति किसी भी उत्तरदायित्व से स्वयं को मुक्त रख, परिवारवाद के समर्थक माननीयों ने न्याय के तन्त्र को उस स्तर पर पहुंचा दिया जहां से ये विघटनकारी तत्वों के प्रतिबिंब होने का भान देते दिख रहे है।

भारत मे जो उथल पुथल हो रही है और जो राष्ट्रवादियों/हिन्दुओ में न्याय द्वारा उद्दंडता से, उनसे अन्याय किये जाने की बेचारगी क्रंदन कर रही है, वो उस काल के सन्निकट होने की तरफ इशारा कर रही है, जो उन घटनाओं की श्रंखला को जन्म देगी, जहां लोकतंत्र का अपमान कर, न्याय को दूषित करने वालों के अस्तित्व को जनता से ही चुनौती मिलेगी।

मुझे यह यकीन होता जारहा है कि केंद्र की वैधानिक रूप से निर्वाचित, संघीय ढांचे की सरकार का, जिस घृष्टता से कांग्रेसियों, वामपंथी सेक्युलरो, माओवादियों, न्यायाधीशों और विदेशी शक्तियों के दासों द्वारा तिरस्कार किया जारहा है, वो अपने अंतिम चरण में गिद्धों और सियारो को न्योता देने वाला सिद्ध होगा।

भारत और उसके हिन्दुओ के दर्शन व आस्था के विरुद्ध खड़ा भारत का एक वर्ग, एक के बाद एक, ऐसी गलतिया करता जा रहा है जहाँ से मुझे उसकी वापसी की सारी गुंजाइशें खत्म होती दिख रही है।

जबसे केंद्र में भारत की प्रथम राष्ट्रवादी सरकार आयी है तभी से, भारत के संघीय और संवैधानिक ढांचे को चरमरा कर, भारत को घुटने के बल ले आने का प्रयास तेजी से होरहा है। यह एक अंतराष्ट्रीय एजेंडा है जिसे भारत के विपक्ष को ढाल बनाकर, वैटिकन चर्च, चीन, वहाबी इस्लाम और भारत को सिर्फ बाजार बनाये रखने वाली शक्तियां अपनी सहभागिता दे रहे है।

इन बाह्य शक्तियों के आंतरिक सहायक, भारतीय वामपंथी, माओवादी, कांग्रेसी और विदेशी पैसो से पलने वाले मानवतावादी और बुद्धजीवी है, जो अपने छद्दम बुद्धजीविता के विकार से उत्पन्न, अहम और दम्भ में, भारत से देश द्रोह को सामाजिक प्रतिष्ठा और मान्यता दिलाने की भूल कर बैठे है। आज जब यह लोग, अपने पिछले 4 वर्षों के प्रयास में सफलता न मिल पाने से अवसाद ग्रसित है तब न्यायपालिका में घुसे इनके सहयोगियों को निष्पक्षता का चोला उतार कर, उनको संजीवनी व प्रश्रय देना पड़ रहा है।

जब न्याय और लोकतंत्र की व्याख्या करने वाले यह माननीय चिदंबरम को स्टे पर स्टे देकर, जेल जाने से बचा रहे हो तो वे भृष्टाचार में सहयोगी नही है?

जब नेशनल हेरोल्ड केस में जमानत लिये घूम रही सोनिया और राहुल गांधी को माननीय, न्यायिक प्रक्रिया को खींच खींच कर, उनको जेल भेजने से शर्मा रही है तो वे 10 जनपथ के पोषित नही है?

हिन्दू आस्थाओं और मान्यताओं पर क्रूरतम प्रहार करने वाले माननीय, हिन्दू विरोधी शक्तियों के सहयोगी नही है?

आधुनिक आयुद्धो से सम्पूर्ण जिस लड़ाकू विमान राफ़ेल के भारतीय वायुसेना में शामिल होने से चीन और पाकिस्तान परेशान है और उससे सम्बंधित गोपनीय जानकारी को प्राप्त करने के लिये वे प्रयासरत है, उसको माननीयों द्वारा सर्वजिनिक पटल पर लाना, उन्हे भारत के शत्रु देशों पाकिस्तान व चीन का हितैषी नही बनाता है?

भारत के प्रधानमंत्री की हत्या की योजना बनाने वालों को, हत्या जैसे जधन्य अपराध का प्रत्यक्ष दोषी न मान कर, माननीय जेल भेजने की जगह उन्हें घर की सुविधाओं मे ही कैद रखने का निर्णय देती है तो प्रधानमंत्री की हत्या के पक्षधर नही है?

बलात्कारी बिशप को 15 दिन में जमानत पर छोड़, मुख्य गवाह को मरने के लिये छोड़ देने वाले माननीय धृतराष्ट्र नही है?

ये न्याय किस बौद्धिकता का दर्शन करा रहा है?

इसमें कभी भी कोई दो राय नही हो सकती है कि कोई भी राष्ट्र, गृहयुद्ध कभी भी नही चाहता है और वह हर संभव प्रयास कर उसको टालना चाहता है लेकिन जब संवैधानिक दीवारों और बहुसंख्यको की अस्मिता को तोड़ने, न्याय के आलयों से आते पदचाप, सुनाई पड़ते है तब राष्ट्र, चाह कर भी उस गृहयुद्ध से वापस नही लौट सकता है।

अब वह समय आगया है कि जब हम लोगो को यह तय करना है की गृहयुद्ध से बचा जाये या फिर उसी में भारत को ध्वस्त हो जाने दिया जाये। इसको हम तभी टाल सकते है जब हम 2019 में माननीयों व उनके द्वारा परिवारवाद से ग्रसित बनाये गये न्यायिक तन्त्र के विरुद्ध जनमत देकर, 400 सीटों से ऊपर की नरेंद्र मोदी जी की सरकार बनाये और पूरे तन्त्र को ही बदल डाले अन्यथा 2019 भारत व हिन्दुओ के लिये 712 साबित होगा जब मोहमद बिन कासिम ने सिंध में राजा दाहिर को हरा कर भारत व उसके हिंदुओं को पहली बार गुलाम बनाया था।

गया में पिण्डदान से प्रेतयोनि से मुक्ति ( सत्य घटना)

गया में पिण्डदान से प्रेतयोनि से मुक्ति
सत्य घटना
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  श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार कल्याण में श्राद्ध पर सविशेष लिखते थे और श्राद्ध करने पर बहुत जोर देते थे। एक उच्चशिक्षित बुद्धिवादी सज्जन ने  यह पढ़ कर सोचा कि शायद हनुमानप्रसादजी ब्राह्मण हैं,अतः श्राद्ध पर जोर देते हैं। उक्त सज्जन श्राद्ध को अंधविश्वास समझते थे। एक बार वे गोरखपुर आये और भाईजी से मिल कर इस पर चर्चा करने का निश्चय किया। अतः वे गीतावाटिका में भाईजी के निवास स्थान पर पहुंच गये। उन्होंने श्राद्ध पर चर्चा शुरू करते हुए इसको ढकोसला बताया और भाईजी से कहा कि आपको बिना किसी पुष्ट प्रमाण इस प्रकार के अंधविश्वास का प्रचार नहीं करना चाहिये। जो व्यक्ति मर गया है, उसके नाम पर अन्नादि देने से उसको वह कैसे मिल सकता है?
   भाईजी उनकी बातों को शांतिपूर्वक सुनते रहे और फिर कहा कि मैं कल्याण में कोई बात तभी लिखता हूं जब मेरे पास उसका प्रमाण हो। श्राद्ध के विषय में मेरे पास एक ऐसा पुष्ट प्रमाण है कि मैं उसके सामने दुनिया के किसी भी व्यक्ति की बात को मानने के लिये तैयार नहीं हूं।
उक्त सज्जन ने कहा---बताइये, वह क्या प्रमाण है। मुझे आप पर पूरा विश्वास है, आप सत्यवादी व्यक्ति हैं । आप झूठ नहीं बोल सकते।
भाईजी ने कहना प्रारम्भ  किया---बात उन दिनों की है जब मैं मुम्बई में व्यापार करता था। शाम को भोजन करने के बाद मैं चौपाटी पर चला जाता था और वहां पर रखी बेंच पर बैठ कर भगवन्नाम जप करता था।एक दिन की बात है। रात हो गई थी। मैं बेंच पर नाम जप कर रहा था। मैंने देखा कि मेरे सामने एक सज्जन खड़े हैं। बहुत समय हो गया तब मैंने उनसे कहा-- श्रीमान् जी बैठ जाइये , खड़े क्यों हैं? अब उन सज्जन ने जवाब दिया-- देखिये, घबराइये मत, मैं प्रेत हूं,  मेरी मृत्यु हो चुकी है,मनुष्य नहीं हूं। प्रेत का नाम सुनते ही मेरे तो पसीना छूटने लगा। प्रेत ने कहा-- मैं आपका कोई अनिष्ट नहीं करूंगा । आपको एक धार्मिक सज्जन समझ कर आपके पास आया हूं। आप मेरा एक काम कर दीजिये। गयाजी में मेरा श्राद्ध पिण्ड दान करवा दीजिये। इससे मुझे इस कष्टपूर्ण प्रेतयोनि से मुक्ति मिल जायगी। पूर्वजन्म में मैं पारसी था। प्रेतों की कई श्रेणियां होती है। जब तक कोई मेरे से बात नहीं करता, मैं बोल नहीं सकता। आपने पहले मेरे से बात की तब मैं बोल सका हूं।
मैंने कहा, पारसी तो श्राद्ध एवं गया पिण्डदान में विश्वास नहीं करते, फिर आप मुझे श्राद्ध पिण्ड दान के लिये क्यों कह रहे हैं? प्रेत ने कहा, सत्य अगर सत्य है तो वह सभी पर लागू होता है। किसी एक धर्म विशेष से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है।
मैंने मुम्बई में उनके निवास स्थान का पता पूछा, पारसी प्रेत ने अपने निवास का पूरा पता बता दिया। इसके बाद वह प्रेत अन्तर्धान हो गया।
दूसरे दिन मैंने प्रेत के बताये गये पते पर जांच की तो सब बातों को सत्य पाया। कुछ दिन पहले वहां एक पारसी सज्जन की मृत्यु हुई थी। मेरे एक मित्र थे हरिरामजी ब्राह्मण। मैंने उनको पारसी प्रेत का श्राद्ध पिण्डदान करने के लिये गयाजी भेजा। हरिरामजी ने गयाजी जाकर शास्त्रोक्त विधि से पारसी प्रेत का पिण्डदान कर दिया। जिस दिन पिण्डदान किया, उसी दिन रात्रि में वह प्रेत वापस मेरे सामने प्रकट हुआ। प्रेत ने कहा, आपने मेरा काम कर दिया, मैं आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिये आया हूं। गयाजी में पिण्डदान से मेरी प्रेतयोनि से मुक्ति हो गई है। अब मैं ऊपर के लोक में जा रहा हूं। मैंने फिर प्रेत से कई बातें पूछीं। मैंने पूछा-- क्या स्वर्ग नरक सत्य है? प्रेत ने कहा, हां सब सत्य है। प्रेत ने और भी कई बातें बताई जो हमारे शास्त्रों में लिखी हुई है। प्रेत ने कहा, शास्त्रों की बातें ऐसी हैं मानो हमारे ऋषियों ने परलोक को अपनी आंखों से देख देख कर लिखा है। प्रेत ने बताया कि किसी के प्रति वैर रख कर मरने वाले की परलोक में बड़ी दुर्गति होती है। व्यभिचारी की भी बहुत दुर्गति होती है। और भी कई बातें बताईं जिनको मैं अभी सबके सामने प्रकठ नहीं कर सकता।
भाईजी की बात सुनकर वे सज्जन गद्गद हो गये और भाईजी को प्रणाम कर लौट गये।
( त्रुटि के लिये क्षमा करें 🙏)
-----------प्रस्तुतिः बीएल परिहार

वे भगवान हमारे हृदय मे प्रकाशित हो !

वे भगवान हमारे हृदय मे प्रकाशित हो !  🙏

वे इतने सहज है की वो हम हो जाते है हम वो हो जाते है ! 🕉

प्राणी मात्र के आत्मा है वे परमेश्वर ... उनका कोई आदि नही अंत नही ... अनादि अनंत है !  🕉

वे हमारे मन को जानते है .. बुद्धि को जानते है विचारों को जानते है .. 🙏

वे परमात्मा निकट से निकट है .. और दूर से दूर है !  🙏

वे परमेश्वर हमारी बुद्धि और चित्त की रक्षा करें !  🙏🕉🙏

https://youtu.be/HPYWrGeH2XA

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भारतीय मनोविज्ञान कितना यथार्थ !

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक डॉ. सिग्मंड फ्रायड स्वयं कई शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रस्त था। 'कोकीन' नाम की नशीली दवा का वो व...